हैवानियत का नया साल
बंगलोर को बड़े शहरों में लड़कियों के लिए अपेक्षाकृत सुरक्षित माना जाता है। यही कारण है कि सुदूर बिहार और यू.पी. से भी लड़कियां यहां इन्जीनियरिंग, मेडिकल और मैनेजमेन्ट पढ़ने के लिए अकेले आ जाती हैं और अकेले रहकर ही पढ़ाई भी पूरी कर लेती हैं। यही नहीं यहां नौकरी भी अकेले रहकर कर लेती हैं। लेकिन ३१ दिसंबर २०१६ की रात में हुई दो घटनाओं ने न सिर्फ बंगलोर को कलंकित किया बल्कि देश का भी सिर शर्म से झुका दिया। पिछले साल की अन्तिम रात को बंगलोर के कमनहल्ली में सड़क से गुजर रही एक युवती को दो मोटर सयकिल चालक युवकों ने अपहरण की नीयत से पकड़ लिया। लडकी द्वारा विरोध करने पर उससे अभद्र ढंग से छेड़खानी की गई, मोलेस्टेशन किया गया और अपने उद्देश्य में अस्फल होने पर सड़क पर ही बलपूर्वक फेंक कर गिरा दिया गया। दोनों युवक नए साल का जश्न मनाकर आ रहे थे और नशे में धुत् थे। दूसरी घटना इसी शहर के महात्मा गांधी रोड की है जहां प्रशासन ने शहर के हर्ट में स्थित खुली, चौड़ी सड़क पर आधी रात के बाद दो घंटे तक सामूहिक रूप से नए साल का जश्न मनाने की अनुमति दी थी। नशे में धुत् युवक-युवतियां देर तक एक-दूसरे के साथ नाचते रहे। लड़कियों को जबतक कुछ समझ में आता, नशेड़ी युवकों ने उन्हें पकड़कर चूमना शुरु कर दिया, जबर्दस्ती पकड़ कर अश्लील हरकतें आरंभ कर दी और सरे आम मोलेस्टेशन भी प्रारंभ कर दिया। पुलिस बहुत देर के बाद हरकत में आई। किसी तरह लड़कियों को बचाया गया। सबसे चौकाने वाली बात यह रही कि इन दोनों घटनाओं पर कर्नाटक के गृहमन्त्री का बयान आया कि नये साल के जश्न में ऐसी घटनाएं तो होती रहती हैं। ऐसी घटनाओं में हमेशा नंबर एक पर रहने वाली दिल्ली में भी नशे में धुत् युवकों ने मुख्य मार्ग पर एक लड़की को अपना शिकार बनाया। गनीमत थी कि वहां पुलिस उपस्थित थी। पुलिस ने लड़की को बचाया। पुलिस की इस कार्यवाही से उत्तेजित लड़कों ने अपने सैकड़ों साथियों के साथ थाने पर ही हमला बोल दिया। जमकर पत्थरबाज़ी और तोड़फोड़ की।
नये साल का जश्न मनाना बुरा नहीं है, लेकिन इस दिन शराब पीकर इन्सानियत की हद पारकर हैवानियत पर उतर आना घोर निन्दनीय है। पता नहीं पश्चिम का उअह कैसा त्योहार है जिसदिन सवेरे से ही युवक-युवतियों पर इश्कबाज़ी का नशा सवार हो जाता है। इस दिन शराब की बिक्री बेतहाशा बढ़ जाती है। अधिकांश युवक अपने को मजनू और राह चलती लड़की को लैला समझने लगते हैं। मनुष्य और पशु में अन्तर सिर्फ विवेक का होता है, वरना भूख-प्यास, निद्रा-मैथुन — दोनों में समान होते हैं। शराब मनुष्य के विवेक को ही नष्ट कर देती है, फिर वह पशुता को प्राप्त हो जाता है। ऐसे में वह कुछ भी कर सकता है। नई पीढ़ी का अपने मूल संस्कारों से कट जाना और पश्चिम का अन्धानुकरण समस्या के मुख्य करणों मे से एक बड़ा कारण है। पाठ्यपुस्कों से तुलसी, सूर, रसखान, जायसी, सुब्रह्मण्यम भारती, चन्द्रबरदाई जैसे कवियों और लेखकों के लुप्त होने के कारण अब युवा पीढ़ी टीवी के बिग बास और देल्ही-वेली जैसी फिल्मों से ही संस्कार ग्रहण करने के लिए वाध्य है। परिणाम सामने है। यह देश जबतक India रहेगा, तबतक ऐसा होता रहेगा। इसे भारत बनाइये, ऐसी समस्याएं अपने आप सुलझ जायेंगीं। हमें नहीं चाहिए आंग्ल नव वर्ष और वेलेन्टाईन डे, जो हमारे युवक-युवतियों को हैवानियत की ओर ले जाय। हम अपने, दिवाली, दशहरा, पोंगल, उगाडी, वर्ष प्रतिपदा, बैसाखी और ईद-बकरीद में ही खुश हैं।