आहट
वो जो एक हल्की नमकीन सी
आहट होती थी ना,
तुम्हारे आने की,
हाँ , तुम्हारे आने की,
वो बस तुम्हारे आने पे ही होती थी ।
उस हल्की सी आहट से
उस अलग सी दस्तक से
धड़क उठता था दिल।
आदत हो गयी थी उस आहट की
जैसे उस आहट के बिना
धड़कना ही छोड़ देगा ये।
लेकिन वो क्या था ?
वही… जो नमकीन आहट
की हल्की सी आवाज़
आना ही बंद हो गयी ।
और दिल ने धड़कना भी नही छोड़ा।
लेकिन वो धड़कना उसका
बहुत चोट करता है भीतर से।
अच्छा….. एक बात मानोगी ?
अब कभी मत आना…
उस तरह आहट करते हुए…
अब उस आहट की थरथराहट से
कहीँ ढह ना जाये दिल मेरा…
और फिर तुम्हारा दिल भी तो
नही रोक पायेगा ना खुद को
यूँ अचानक मिलकर… रो देने से…
इसलिये… अब कभी मत आना..
उस तरह आहट करते हुए…
वो ही हल्की नमकीन सी आहट…..
— जी आर वशिष्ठ