कविता

कुण्डलियाँ

दंगल में फिर सामने, कुर्सी के बलवीर
छोड रहे है देखिये, नित वाणी के तीर
नित वाणी के तीर, गिराते है मर्यादा
नीति की नही बात ,बढा केवल छल ज्यादा
कह बंसल कविराय, द्वेष के उगते जंगल
शुरु हो गया देखो, सत्ता का वही दंगल॥

कुर्सी देखो बिक रही, वोट लगे है दाम
कोई जपता है खुदा, कोई जपता राम
कोई जपता राम, जाति का गणित लगाता
कोई देता घाव, कहीं कोई सहलाता
कह बंसल कविराय, जेब सरकारी बरसी
लगा रहे सब जोर, मिले बस हमको कुर्सी॥

वादा फिर करने लगे, मचा मचा कर शोर
वादों की ही बात है, देखो चारो ओर
देखो चारो ओर, मचा वादों का हल्ला
माँग रहे हैं वोट, सभी फैला कर पल्ला
कह बंसल कविराय,जीत का लिये इरादा
जनता से नित नवल, करेगें झूठा वादा॥

सतीश बंसल
०७.०१.२०१७

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.