ग़ज़ल
नये साल में एक ताज़ातरीन ग़ज़ल
कुछ काम ज़रूरी जो हमारे निकल आए,
रिश्तों में कई पेंच तुम्हारे निकल आए।
हमने तो वही बात कही है जो बज़ा थी,
क्यूँ आपकी आँखों से शरारे निकल आए।
जिस कारे – जफ़ाई से परीशान रहे हम,
उस ग़म के यहाँ और भी मारे निकल आए।
हैं बाद तेरे, ख़्वाब तेरे, यादें तेरी अब,
जीने के लिये और सहारे निकल आए।
बैठे रहे साहिल पे तो पहुँचे न कहीं तक,
जब ग़र्क हुए हम तो किनारे निकल आए।
ज़ाहिर है कोई काम तुम्हे ‘होश’ पड़ा है,
यूँ ही तो मरासिम न तुम्हारे निकल आए?
शरारे -चिंगारी ; कारे-जफ़ाई – धोका देना
मरासिम – रिश्ते, संबंध