बिता रहे क्यूँ व्यर्थ ही, चिंता में दिन रात…
बिता रहे क्यूँ व्यर्थ ही, चिंता में दिन रात।
सभी चिता पर जायगें, केवल खाली हाथ॥
भाग रहा दिन रात है, जाने क्यूँ इंसान।
करता जाने क्यूँ नही, अपनी ही पहचान॥
मन माया का फेर है, तन है भोग विलास।
जितना इसको भोगता, उतनी जगती प्यास॥
पहला सच तो ईश है, दूजा सच है मौत।
लालच को बस जानिये, ईश मिलन में सौत॥
दृष्टि पटल वो देखता, जो मन उसे दिखाय।
अंतस में श्री राम है, पर मन देखे नाय॥
ईश वास ही जानिये, काया की पहचान।
जीव ईश है प्राण है, काया है परिधान॥
पंच तत्व का मेल है, देह नाशिनी जान।
प्राण ईश है देह का, प्राण बिना रज मान॥
कर्म किये करतार है, कर्म किये बिन दीन।
करना तेरा कर्म है, फल ईश्वर आधीन॥
बंसल केवल कर्म ही, इस जीवन का सार।
कर्मो के अनुसार ही, फल देते करतार॥
- सतीश बंसल
०६.९१.२०१७