लेखसामाजिक

शिक्षक का चरित्र कैसा हो

चरित्र ही व्यक्ति की समाज में स्थापना करता है। जिसके आसरे समाज में व्यक्ति का स्तर तय होता है।
एक सवाल कई बार उठते रहे है कि जिस शिक्षक के हाथों में वर्तमान और भावी पीढ़ी की बागडोर होती है।जिसके नज़रों के सामने देश-समाज का भविष्य फलता और फूलता है आखिरकार उस शिक्षक का चरित्र कैसा होना चाहिए? कारन क्या है इस सवाल का उत्तर खोजने का? शायद कई लोगों को इस सवाल पर ऐतराज हो , कुछ लोग इस सवाल पर अपनी प्रतिक्रिया ना भी दें, तो कुछ लोगों के लिए इस सवाल की कोई एहमियत भी ना हो।
परंतु समाज को एक संस्कारित ,भयमुक्त तात्कालिक निर्णय क्षमतावाली, दूरदृष्टि की सोच रख नेतृत्व करने वाली पीढ़ी की जरुरत है तो आज इस सवाल पर विचार करना ही होगा। मनोविज्ञान कहता है कि बच्चा जिस समाज के बीच रहता है जैसे विचारों को सुनता और प्रतिक्रिया देखता है उसके ही आधार पर उसकी अपनी सोच भी विकसित होती है।उसके संपर्क में आने वाले लोगों -विचारों से ही उसकी बुद्धि में सोचने और देखने की क्षमता का जन्म होता है ।
समाज की सांस्कृतिक, सामाजिक, व्यवहारिक दशा ही उसको जीवन देती है यदि ऐसा कहें तो इसमें दो राय नहीं होगा।
जब माता -पिता अपने सपनों को बच्चों में देख कर उन्हें शिक्षा देने के लिए विद्यालय में प्रवेश दिलाते हैं तो उनका उनके बच्चों का पहला संपर्क आता है शिक्षक के साथ । कल्पना कीजिये कि एक बच्चा कक्षा में प्रवेश करता है सभी अंजानो के बीच उसका हर बढ़ता हुआ कदम उस मजबूत बुनियाद की तरह होता है जिसकी सतह पर उसे जीवन गढ़ना होगा।
अब उस बच्चे का संपर्क जैसे ही उसके शिक्षक के साथ होगा उसकी पहली ही मुलाकात में क्या ऐसा हो सकता है कि उस बच्चे के ज़हन में उस शिक्षक के प्रति सकारात्मकता का वह भाव जाग जाये जिसके आधार पर ओ बच्चा उस शिक्षक में अपना पालक ,एक सच्चा दोस्त तो कहीं न कहीं चिकित्सक मान कर अपनी हर वो बात कहे जिसके कारन ही उन्हें बच्चा कहा जाता है।
शिक्षक का पहला रवैया:-

यँहा यह जरुरी है कि शिक्षक जब पहली बार किसी नई कक्षा में प्रवेश कर रहा हो या किसी नए बच्चे से मिल रहा हो तो उसे अपने चेहरे पर वही भाव रखने चाहिए जो कि वह दूसरों से अपेक्षा करता है।
उसे चेहरे पर मुस्कान,आँखों में चमक और अपनी व्यक्तिगत चिंताओं से परे व्यवहार को बच्चों के सम्मुख प्रस्तुत करना चाहिए।
यदि स्वामी रामकृष्ण जी का चरित्र ना होता तो विवेकानंद को सही दिशा नहीं प्राप्त होती।शिक्षक को इसलिए ही कुंभार की उपमा दी गई है।जो मिट्टी के ढेले को आकार देकर उसे समाज में स्थान और सम्मान दिलाता है।
स्टाफ रूम कैसा हो–

यँहा इस विषय पर चर्चा अनिवार्य है क्योंकि इस स्थान विशेष से ही विद्यालय का भविष्य तय होता है। इस स्तर पर विशेष सदैव सकारात्मकता का, एक सजीव ऊर्जा का वातावरण बनाकर रखना जरुरी है।जो कि सभी अन्य शिक्षकों को भी ऊर्जा देकर उन्हें प्रेरित करता है।
शिक्षकों की प्राचार्य और प्रबंधन समिति के प्रति सदैव विश्वास की डोर बनी रहनी चाहिए।
व्यक्तिगत जाँच पड़ताड़ के बाद यह समझ आया है कि स्टाफ रूम में दो ही चर्चा के विषय रहते हैं एक प्राचार्य और दूसरा प्रबंधन समिति । मैं यह नहीं कहता कि यह बंद हो परंतु इस चर्चा को positive रूप में रखा जाये तो कभी किसी को भी निराशा का सामना नहीं करना पड़ेगा। स्टाफ रूम में व्यक्तिगत घरेलु बातों  को कभी भी जन्म नहीं देना चाहिए। अपनी व्यक्तिगत बातों को सार्वजनिक करने से कभी -कभी शिक्षक को चिंता से ग्रसित होना पद सकता है। ज्यादा से ज्यादा बच्चों और नई बातों को,कार्यप्रणालियों पर ही सामूहिक चर्चा होनी चाहिए।
अपने सह शिक्षक की किसी भी स्तर पर जाकर मदद करने की सदैव भावना हर शिक्षक में होगी तो वही भावना बच्चों में भी जायेगी।कारन बच्चा देखकर ही सीखता है।
कई बार कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनको शिक्षकों पर थोपा जाता है।जिनका वास्तविक् धरातल पर व्यवहारिकता से कोई मेल नहीं होता और उससे शिक्षक को बहुत सी चिंताए घेर लेती है।परंतु ऐसे समय में ही शिक्षक की परीक्षा की घडी होती है।जो कि उन्हें मजबूत करती है।ऐसे समय में सदैव ही उस चुनौती को हँसते हुए स्वीकार्य करें और हर काम से कुछ समय निकालकर उसे पूर्ण करने का ऐसा प्रयास करें कि काम दाएँ हाथ से हो जाये और आपके बाएँ हाथ को पता भी न चले।संभव हो तो ज्यादा से ज्यादा धन्यवाद शब्द का प्रयोग करें और चेहरे पर हँसी बनी रहने दे।अपने उच्चस्तर के अधिकारीयों का सदैव आभार मानते रहना चाहिए जिनके कारन शिक्षक को बहुत कुछ हर पल सीखने मिलता है।
अपने घर और विद्यालय के बीच दूरी बनी रहने देना चाहिए।जिससे व्यक्तिगत और विद्यालयीन जीवन दोनों खुशहाल होंगे।

पहनावा:-

शिक्षक के संपर्क में बच्चे ज्यादा रहते हैं। महिला हो या पुरुष सदैव अपने पहनावे पर ध्यान देना इस क्षेत्र में अनिवार्य होता है। हम उस देश में है जँहा फैशनुमा जीवन भी संस्कृति के साथ हो सकता है। यही वो दायरा है जो कि एक शिक्षक को सदैव औरों के सम्मुख विशेष बनाता है।

व्यवहार :– 

शिक्षक का कार्य अध्यापन ही नहीं अपितु संयम और संस्कारों को समाज में स्थापित करना भी है। यदि शिक्षक संयमित होगा तो समाज में नए प्रतिमान स्वयं बनेंगे। बच्चों के सामने चिड़चिड़ापन इस क्षेत्र में घातक है उन बच्चों के लिए जो कि खाली स्लेट की तरह हैं।
समानता का भाव हर बच्चे के साथ रखना  चाहिए, भले ही वह अंक ना लें लेकिन शिक्षक को यह ध्यान रखना होगा कि वो संस्कार और सम्मान का भाव जरूर सीखें क्योंकि यही भाव उन्हें जीवन में आगे बढ़ाता है। अंकों के आधार पर बच्चों को ना आँके हर बच्चे की अपनी प्रतिभा होती है।उसे निखारने का हर वक्त प्रयास करें।
माता -पिता के सम्मुख उनके बच्चों की सही तस्वीर सदैव प्रस्तुत करें।जिससे उनके और आपके बीच वह रिश्ता बनेगा कि आप इस क्षेत्र के उद्देश्य को पूर्ण कर पाएँगे।

उपसंहार:-
शिक्षक ऐसा क्षेत्र है जहाँ समाज के सभी लोगों से ज्यादा जिम्मेदारी होती है।जिनके ही कर्मों की ईमानदारी से समाज का भविष्य फलता और फूलता है। छात्र भले ही सचिन तेंदुलकर बन जाए पर अपने शिक्षक का सम्मान हर मंच पर करते हैं। यह तभी संभव है जब उसका पोषण उस प्रकार से किया जाएगा।
यह क्षेत्र ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि कुछ नहीं मिला तो इस क्षेत्र में आ गए।अपितु इस क्षेत्र में ही चुनौतियाँ और जिम्मेदारियां सदैव आपके सम्मुख रहती हैं।जिनका एक शिक्षक को सदैव ध्यान रखना चाहिए। आप बाहर निकले,कहीं जाएं तो भी इसको न भूले कि आप एक शिक्षक हैं। आपका पहनावा,मिलने जुलने का तरीका भी बहुत मायने रखता है क्योंकि आपको नहीं पता कहाँ कब किस वक्त आपको आपका छात्र देख रहा हो। एक शिक्षक की पूँजी उसका चरित्र है। जिससे बढ़कर और कुछ नहीं। सम्मान और प्रतिष्ठा भरपूर मिलेगी परंतु कब जब आपका चरित्र और व्यवहार वैसा होगा।
आओ मिलकर इस क्षेत्र में नए प्रतिमान गढ़े और संस्कारित पीढ़ी का निर्माण करें।

रवि शुक्ल ‘प्रहृष्ट’

नासिक

रवि शुक्ला

रवि रमाशंकर शुक्ल ‘प्रहृष्ट’ शिक्षा: बी.ए वसंतराव नाईक शासकीय कला व समाज विज्ञानं संस्था, नागपुर एम.ए. (हिंदी) स्नातकोत्तर हिंदी विभाग, राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्व विद्यालय, नागपुर बी.एड. जगत प्रकाश अध्यापक(बी.एड.) महाविद्यालय, नागपुर सम्प्रति: हिंदी अध्यापन कार्य दिल्ली पब्लिक स्कूल, नासिक(महाराष्ट्र) पूर्व हिंदी अध्यापक - सारस्वत पब्लिक स्कूल & कनिष्ठ महाविद्यालय, सावनेर, नागपुर पूर्व अंशदायी व्याख्याता – राजकुमार केवलरमानी कन्या महाविद्यालय, नागपुर सम्मान: डॉ.बी.आर.अम्बेडकर राष्ट्रीय सम्मान पदक(२०१३), नई दिल्ली. ज्योतिबा फुले शिक्षक सम्मान(२०१५), नई दिल्ली. पुरस्कार: उत्कृष्ट राष्ट्रीय बाल नाट्य लेखन और दिग्दर्शन, पुरस्कार,राउरकेला, उड़ीसा. राष्ट्रीय, राज्य, जिल्हा व शहर स्तर पर वाद-विवाद, परिसंवाद व वक्तृत्व स्पर्धा में ५०० से अधिक पुरस्कार. पत्राचार: रवि शुक्ल c/o श्री नरेन्द्र पांडेय पता रखना है अन्दर का ही भ्रमणध्वनि: 8446036580