कुछ और
सब अपने चश्मे से देखते हैं
दुनिया मगर मेरे देखने का
नजरिया कुछ और है
सब मशगूल है लिखने में
कहानियां अपनी-अपनी
मगर मैं सवार हूं जिस कश्ती
में उसकी दरिया कुछ और है
बड़ी जद्दोजहद करनी पड़ती है
अपना वजूद बचाने में
टपकता आशियाना देखा है मैंने
मगर जिंदगी से मेरा वादा कुछ और है
मैं कमाने नहीं आया यहां पर
शौहरत और दौलत जरा गौर से सुनो
मेरी आवाज को मेरा इशारा कुछ और है
संगीत देखा है मैंने
फुटपाथ पर बैठा एक और एक बार में बैठा
मगर मेरा तराना कुछ और है
काबिलियत मिल जाती है
हर जगह, हर शहर में
पास बैठकर गुनगुनाऊं
यारों मेरा फसाना कुछ और है
पैसे से खरीद लेते हैं
लोग खुदा और भगवान को
नहीं जाता मैं मंदिर ,मस्जिद
मेरा विश्वास कुछ और है
जिंदगी के मायने समझ में
आ जाते हैं जब देखता हूं
खाली पेट लोगों को हाथ फैलाए
समझ जाओगे वक्त आने पर
मेरा यह बनवास कुछ और है