नारी और नदी
नारी और नदी कहीं ना कहीं समान होती हैं।
दोनों अपनी जगह पर महान होती हैं।
एक जीवन दायक जल सँजोती है ।
तो दूसरी खुद जीवन दायक माँ होती है ।
एक हिमालय की ऊंचाइयों का वरदान होती है ।
तो दूसरी पूजनीय देवी समान होती है।
सरिता हिमालय से अधोगतित होती है ।
निज पथ पर बार बार पतित होती है ।
वह बहुत सारे नगरों देशों का प्रदूषण लेकर सागर में गिर जाती है।
मीठी नदी खारे जल में घिर जाती है ।
पर उसके प्रदूषण से समंदर का कुछ नहीं बिगड़ता है ।
नदी का अस्तित्व मिट जाता है ,
मगर समंदर समंदर ही रहता है ।
वह नदी पुनः भाप बनकर उड़ जाती है ।
और हिमालय की ऊंचाइयों से जुड़ जाती है ।
पर यदि कोई पतित नारी किसी पुरुष को पकड़ती है ,
तो उसका दिन प्रतिदिन पतन होता है।
वह अपने आर्थिक सामाजिक और नैतिक मूल्यों को खोता है ।
इतना ही नहीं ,
वह नारी समाज के लिए अभिशाप हो जाती है ।
वह हर रोज नए नए घर जलाती है।
बस यहीं नारी और नदी असमान होती हैं।
बाकी नारी और नदी कहीं न कहीं समान होती हैं ।
दोनों अपनी जगह पर महान होती हैं ।
© दिवाकर दत्त त्रिपाठी