कविता

शरीफ की ज़िंदगी

शरीफ बन कर रहना एक गुनाह हो रहा है,
शराफत दिखा कर जीना, सजा हो रहा है,
शराफत दिखाना जिसका दस्तूर हो गया है,
घुट घुट के जीने की लिए, मज़बूर हो गया है,
सीने पे घाव ले कर भी हम जो मुस्कुरा रहें हैं,
ये जो दुश्मन हमारे उस का लुफ्त उठा रहें हैं,
न कहीं कोई हमदर्दी न कहीं कोई फ़रियाद,
दूसरों के माल पर ,हक़ अपना जमा रहें हैं,
मज़बूरी में फंसा कर यह, इन ‘नादानों’ को ,
ये ज़ालिम अपने मन ही मन मुस्कुरा रहें है,
यही सोच कर कि अंतिम फैसला प्रभु के हाथ है,
हम भी शराफत दिखाने से बाज़ न आ रहे हैं,
जय प्रकाश भाटिया
०९/०१/२०१७

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845