कविता

सूखा

सूखा पत्ता हूं यूं ही उड़ता रहूंगा
कभी आंधी से कभी तूफान से
मैं बस यूं ही जुड़ता रहूंगा
मैं उस हरे पत्ते की तरह
किसी का मोहताज नहीं
मैं सूखा हूं हवाओं से बातें करता हूं
कभी यहां कभी वहां
दूर गगन में हिलोरे
लेता हुआ मैं उड़ता रहता हूं
कभी छू लेता हूं जमीन को
कभी छू लेता हूं आसमान
फिजाओं की पालकी में झूलता रहता हूं
मैं मगन हूं अपनी जिंदगी में
क्योंकि मुझे पता है मेरी मंजिल क्या है ?
मेरी मंजिल पता नहीं जलकर राख हो जाऊं
या मिट्टी में दफ़न खाक हो जाऊं
मगर मैं आजाद हूं !!
गुलाम नहीं !?
मैं आजाद यूं ही उड़ता रहुंगा
कभी आंधी से कभी तूफान से
मैं बस यूं ही जुड़ता रहूंगा
मैं सूखे पत्ते सा

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733