गायब हुए गाँधीजी
एक दिन नोटों में से गांधीजी गायब हो गए, नोटों की वैधता समाप्त हो गयी। राजनेता परेशान, रिज़र्व बैंक परेशान, पुलिस परेशान… और जनता, उसे कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि एक भावनात्मक भाषण में राष्ट्रप्रेम के नाम पर यह कह दिया गया कि गांधी जी पडौसी मुल्क में गए हैं, वहां से जिन्ना का जिन्न लेकर आयेंगे, तब पूरी जनता अलादीन बन जायेगी।
उसी दिन एक बुद्धिजीवी गाँव गया हुआ था, दिन भर परेशान रहा और जब शाम को सहा नहीं गया तो लोटा लेकर वह शौचालय ढूँढने निकला। वहीँ बीच रास्ते में एक बड़ा सा झाडू लेकर गांधी जी खड़े थे। बुद्धिजीवी देखते ही चौंका, और अपनी हालत भूल कर हैरत से पूछा, “गांधी जी, हम तो यह सोच रहे हैं कि आप पडौसी देश में गए हैं, लेकिन आप तो यहाँ इस हालत में? कहीं आप भी नोटबंदी से परेशान तो नहीं हैं?”
गांधी जी ने उत्तर दिया, “नोटबंदी तो अब हुई है लेकिन मैं तो कब से इस नोट में बंदी हूँ, आज ही छूटा हूँ।”
“लेकिन आप भागे क्यों?” बुद्धिजीवी ने एक बुद्धिमतापूर्ण प्रश्न दागा।
“मैं गाँवों को स्वच्छ करने के लिये भाग कर आया हूँ, कभी ध्यान से देखा है, नोट पर मेरी हंसती हुई तस्वीर है, लेकिन मैं नोट में बंदी होकर कैसे हँस सकता हूँ, नोट तो पूंजीवाद की निशानी है और मैं ठहरा समाजवादी।”
“समाजवादी! समाजवादी पार्टी… लेकिन आप तो कांग्रेस में थे ना?”
एक और बुद्धिमतापूर्ण प्रश्न सुनकर गांधीजी असमंजस में पड़ गए, बहुत सोच-समझ कर उत्तर दिया, “मैं कांग्रेस में था… फिर सारे राजनेताओं और उद्योगपतियों की जेब में आ गया, इसलिए भागने में ही भलाई समझी।”
“क्यों? उनके पास रहने में क्या बुराई थी?”
“मुझे इनकी जेबों में नहीं रहना है, बल्कि किसानों के द्वारा जमीन में दबकर खेतों में लहलहाना है, वहीँ जा रहा हूँ… अपने वो काम करने जो अधूरे हैं…”
कहकर गांधीजी सड़क को साफ़ करने लगे और बुद्धिजीवी ने मौके का लाभ उठाते हुए अपना स्मार्टफोन निकाल लिया, वीडियो बनाने के लिए।