गीत : ढंग निराले होते जग में मिले जुले परिवार के
ढंग निराले होते जग में, मिले जुले परिवार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
चमन एक हो किन्तु वहाँ पर, रंग-विरंगे फूल खिलें,
मधु से मिश्रित वाणी बोलें, इक दूजे से लोग मिलें,
ग्रीष्म-शीत-बरसात सुनाये, नगमें सुखद बहार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
पंचम सुर में गाये कोयल, कलिका खुश होकर चहके,
नाती-पोतों की खुशबू से, घर की फुलवारी महके,
माटी के कण-कण में गूँजें, अभिनव राग सितार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
नग से भू तक, कलकल करती, सरिताएँ बहती जायें,
शस्यश्यामला अपनी धरती, अन्न हमेशा उपजायें,
मिल-जुलकर सब पर्व मनायें, थाल सजें उपहार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
गुरूकुल हों विद्या के आलय, बिके न ज्ञान दुकानों में,
नहीं कैद हों बदन हमारे, भड़कीले परिधानों में,
चाटुकार-मक्कार बनें ना, जनसेवक सरकार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
बरसें बादल-हरियाली हो, बुझे धरा की प्यास यहाँ,
चरागाह में गैया-भैंसें, चरें पेटभर घास जहाँ,
झूम-झूमकर सावन लाये, झोंके मस्त बयार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
— डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’