गीत : बंगभूमि का रंग-भंग
(बंगाल के एक मौलवी द्वारा मोदी जी के मुंडन का फ़तवा ज़ारी करने पर ममता खातून और उनके चेलों को चेतावनी देती मेरी नयी कविता)
बंग भूमि का रंग भंग है, दंगाई हुंकारें हैं
शांति निकेतन के तन पर अब तनी हुई तलवारें हैं
अब रविंद्र संगीत कहाँ है? कहाँ बोस का नारा है?
गीतांजलि भी जली हुई है, हुगली का मन हारा है
बंगाली मिठास गायब है, ज़हर सने रसगुल्ले हैं
बंकिम की छाती पर देखो बैठ गए कठमुल्ले हैं
माँ माटी मानुष का नारा लेकर ममता आयी थी
हर गरीब का एक सहारा लेकर ममता आयी थी
वामपंथियों को दर्पण दिखलाने ममता आयी थी
कांग्रेस को एक सबक सिखलाने ममता आयी थी
आज उसी ममता का तेवर बदला बदला लगता है
नोटबंद पर भड़क रही हैं, कुछ तो घपला लगता है
तीन लाख की भीड़ मालदा की गलियों में टूट पड़ी
धू धू कर के आग जलाकर, धूलागढ़ पर छूट पड़ी
जली कोठियां, लुटी दुकानें, तोड़ दिए सब ताले थे
इन सारे बलबों के नायक, टोपी दाढ़ी वाले थे
ममता इतनी क्रूर हो गयी, नागिन बच्चे निगल गयी
ममता की ममता ना जागी, सख्त शिला भी पिघल गयी
अंश बनर्जी खानदान का, बामन कुल की बेटी है
तन पर साड़ी श्वेत, हृदय पर चादर हरी लपेटी है
ममता जेहादी हाथों को, बरछी भाले बाँट रही
तृणमूली सरकार हिंदुओं को मूली सा काट रही
ये ममता ना ममता लागे, ना तो लगे बनर्जी है
केवल है कुर्सी की प्यासी, नेता पूरी फर्जी है
खुदीराम सा जोश कहाँ है, कायरता से हारा है
बंगाली हिन्दू बेचारा सीधेपन का मारा है
वो तो मोदी, मार्क्सवाद, ममता में बंटता जायेगा
बंटा रहेगा आखिर धीरे धीरे कटता जायेगा
कठमुल्लों की हिम्मत देखो, किसके दम पे फूल गए
दीदी के दुलार में आकर, औकातें तक भूल गए
ये जेहादी कुनबों से गठबंधन करने वाले है
इनके फतवे मोदी जी का मुंडन करने वाले हैं
किस चक्कर में पड़े मौलवी, कैसा फतवा जारी है
लगता है गहरी साज़िश है, हमले की तैयारी है
सोच रहे हैं मोदी का ये मुंडन भी कर जाएंगे
देश देखता मौन रहेगा, भक्त सभी डर जायेंगे
अरे अक्ल के अंधो सुन लो, घोर विपत्ति छायेगी
मोदी जी पर इक खरोंच, सब पर भारी पड़ जाएगी
‘कवि गौरव चौहान’ कहे तुम जिस भाषा में बोलोगे
ज़हर मिलेगा अगर ज़हर को जनमानस में घोलोगे
आप कहो तो गोली मारें, गंगा जमुनी बातों को
प्रतिघातों से उत्तर दे दें हम कायर आघातों को
आप कहो तो कोने में रख दें, विकास के नारों को
आप कहो तो लहरा दें फिर गुजराती हथियारों को
मोदी जी के मुंडन की जो बात जुबां पर आएगी
जय काली कलकत्ते वाली, फिर उत्पात मचाएगी
इससे पहले, मोदी जी पर हाथ बढ़े गद्दारों का
इससे पहले हमला हो, दहशत के ठेकेदारों का
उससे पहले आग लगेगी, हर फतवे के छप्पर में
मुल्ला जी की गर्दन होगी चामुंडा के खप्पर में
— कवि गौरव चौहान