लघुकथा

गुरु और चेला

राजेश बाबा चेलाराम का परम भक्त था । अभी वह उनके आश्रम में आयोजित सत्संग से ही लौट रहा था । आज आश्रम में बाबा चेलाराम ने बड़ा चमत्कार दिखाया था । हजारों लोगों के भीड़ की मौजूदगी में बाबा ने हवा में हाथ लहराकर घडी प्रकट कर दी थी और एक भक्त की ओर फेंक दिया था । इसी तरह बाबा ने हवा में से ही बहुत सी चीजें प्रकट की । लोग बाबाजी के जयकारे लगाने लगे थे ।

ऐसे चमत्कारी बाबा के सान्निध्य से अभिभूत राजेश सड़क किनारे लोगों की भीड़ देखकर रुक गया । भीड़ में घुस कर राजेश ने देखा एक जादूगर एक जमूरे के साथ जादू का खेल दिखा रहा था ।

जादूगर ने एक डब्बा जमूरे के पिछवाड़े लगाया । वह डब्बा सिक्कों से भरने लगा । डब्बे से ढेर सारा सिक्का नीकाल कर जादूगर ने लोगों को दिखाया । अपने हाथ में पकडे सौ रुपये को हवा में गायब कर दिया और फिर वही नोट उसने एक दूसरे आदमी की जेब से निकाला । ऐसे  बहुत से खेल जादूगर दिखा रहा था लेकिन अब राजेश का दिमाग कहीं और सैर कर रहा था । उसके दिमाग में उथल पुथल मची थी । वह फैसला नहीं कर पा रहा था कि जादूगर और बाबा में से कौन गुरु था और कौन चेला । दोनों की जादूगरी काबिले तारीफ थी फिर बाबा भगवान कैसे ? और फिर उसने मन ही मन फिर कभी बाबा के आश्रम में न जाने का फैसला कर लिया ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।