कविता

तेरी यादें

इतना दर्द तो मुझे
ये सर्द के हवा भी नही देते
जितना की तेरी यादे
रह रहकर दर्द देती है
सर्द के मौसम मे जब
ये गुलाबी सुनहरे धूप निकलते है तो
मै इस धूप मे बैठ कुछ पल के लिये
ठंढ दूर कर लेती हूँ
काश इसी तरह
तेरी यादें दूर करने का भी
कोई सुनहरा धूप होती
तो मै तुम्हे हर रोज
याद ही नही करती
लेकिन ये संभव ही कहॉ
जितना ही तुम्हे भूलाना चाहती हूँ
उतना ही याद आते हो
मेरे मन मे कोहरा की भॉती
हर पल छाये रहते हो
ये कोहरा रूपी यादे तभी समाप्त होगे
जब तक तुम प्रकाश रूपी सूर्य बनकर
मेरे पास नही आते|
निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४