कविता

मजबूरी

मजबूरी हा मजबूरी
कर देता है बाधित
बच्चो को भी करने को काम
सुबह सुबह ही
दिखते है सडको पर
चूनते हुये प्लास्टीक के डब्बे
ठंढ मे कॉपते हुये
रेलवे स्टेशनो पर
यात्रीयो के ढोते सामान
न ढंग से तन पर कपडा
न पेट मे भोजन
न मॉ का साया न पापा का प्यार
फिर कौन देगा इन्हे
तन का कपडा और पेट का भोजन
इन्ही सब कारणो से चढा देते है बलि
अपना प्यारा बचपन
जिस समय इन्हे स्कूल जाना है
उसी समय छोटे छोटे हाथो मे
कलम किताब के जगह
भारी भरकम बोझ उठाये
दिखते है करते काम
ये मजबूरी नही है तो क्या है
जो मार देते है अपनी
बचपन की सभी ख्वाहिशे|

निवेदिता चतुर्वेदी ‘निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४