कविता

शक

ये शक भी कभी
बे वजह हो जाता है
इसके चलते
कितने रिश्ते दम
तोड जाते है
कितनो के जीवन
बिखर जाते है
संभाल नही पाते
अपने आप को
जब किसी के
शक के गिरोह मे
हो जाते हैं
इसका न कोई दवा
नही कोई उपचार है
सब रोगो पर भारी यह
हो जाते कई शिकार है
बडे बडे हकीम बैद्य भी
इसको दूर नही कर पाये हैं|
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निवेदिता चतुर्वेदी ‘निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४