उपन्यास अंश

आजादी भाग –२०

राहुल उस कमरे में  बड़ी देर तक यूँ ही पड़ा रहा । इस बीच एक एक कर बच्चे उठते रहे और राहुल उन्हें हकिकत बता कर शांत करता रहा । अब सभी बच्चे अपनी बेहोशी त्याग कर पुरे होशोहवाश में थे । राहुल द्वारा वस्तुस्थिति से अवगत कराये जाने की वजह से उनका भय कुछ कम हुआ था और आनेवाले हालात का सामना करने के लिए सभी मानसिक रूप से तैयार हो रहे थे । सभी शांत चित्त लेटे हुए अपने अपने खयाली घोड़े दौड़ा रहे थे । अब आगे जाने क्या होनेवाला था ।
लगभग दो घंटे बाद उस घर का दरवाजा खुला । पहले तो वही दोनों आदमी जो उनको वहां तक लाये थे कमरे में प्रवेश किये । उनके पीछे दुसरे चार आदमी और उनके पीछे एक खुरदुरे चेहरे वाला मोटा काला सख्त सा दिखनेवाला इन्सान जिसके होठों के ऊपर एक पुराना जख्म का निशान साफ दिख रहा था कमरे में प्रवेश किया । जैसे ही उस आदमी ने कमरे में प्रवेश किया किसी आदमी ने तत्परता से एक कुर्सी लाकर उन बच्चों के बीच ही रख दिया था । सभी बच्चे डरे सहमे से दिखाई दे रहे थे और कमरे में ही एक कोने में दुबके हुए थे । एक आदमी ने उस कुर्सी को अपनी जेब में रखे रुमाल से साफ़ करते हुए उस मोटे से आदमी की तरफ देखते हुए कहा ” कालू भाई !असलम भाई जबान के पक्के मर्द आदमी हैं । देखो जब इतनी हवा ख़राब चल रही हो फिर भी उस आदमी ने इतना रिस्क लेकर हमारा काम किया । ये पूरे दस चूजे हैं । और हैं भी कितने सही । न एकदम छोटे न बहुत बड़े । ये दो थोड़े बड़े हैं भी लेकिन इनका अलग उपाय किया जा सकता है । ” कहते हुए वह आदमी कुर्सी साफ कर के उस कुर्सी के पीछे ही खड़ा हो गया । वह कालू नाम का आदमी उस कुर्सी पर जा बैठा । कुर्सी पर बैठते ही उसने घूरकर बच्चों की तरफ देखा । उसकी नज़रों में ठीक वही भाव थे जो अपने बकरों की तरफ देखकर एक कसाई की आँखों में होती है । उसकी नज़रों से सामना होते ही बच्चों के बदन में सिहरन दौड़ गयी । कुर्सी पर बैठे बैठे ही कालू ने कमरे में ही एक कोने में पिच से थुकते हुए पहले कमरे में घुसे दोनों आदमियों की तरफ देखते हुए बोला ” हां ! अब्दुल भाई ! सभी चूजे सही हैं । अब तुम्हारा काम पुरा हुआ । अब तुम जा सकते हो । और हाँ ! असलम भाई को मेरा सलाम और शुक्रिया कहना । ”
उन दोनों ने आगे बढ़कर झुक कर कालू को सलाम किया और फिर पीछे मुड़कर वापस चले गए । थोड़ी देर में गाड़ी का इंजन स्टार्ट होने की आवाज आई और फिर धीरे धीरे यह आवाज दुर होती गयी ।
कमरे का दरवाजा एक बार फिर बंद हो चुका था । कालू के करीब खड़े एक आदमी ने अपने सीर के पास स्थित बिजली का एक बल्ब चालु कर दिया था । मद्धिम सी मटमैली रोशनी कमरे में फ़ैल गयी । अब कालू उठकर खड़ा हुआ और उसी कमरे में रखी एक बड़ी सी अलमारी का दरवाजा खोलने लगा । अलमारी पर एक बड़ा सा ताला जड़ा हुआ था । अलमारी का ताला खुलते ही राहुल ने देखा कालू और फिर उसके पीछे उसके सारे आदमी एक एक करके अलमारी में समाते चले गए ।
दरअसल यह ऊपर से दिखने में ही अलमारी लग रही थी जबकि वास्तव में यह मकान के पीछे वाले हिस्से में जाने का चोर और एक मात्र दरवाजा था । यह दरवाजा मकान और उसके पिछवाड़े स्थित ऊँची दीवारों से घिरी जमीन को जोड़ने की एकमात्र कड़ी थी ।
थोड़ी देर बाद कालू और उसके साथी एक एक करके उसी अलमारी नुमा दरवाजे से बाहर निकले । इस कमरे में दो आदमी को छोड़ बाकी सभी मुख्य दरवाजे से बाहर निकल गए ।
सबके जाने के बाद उन दोनों ने सभी बच्चों से उठकर खड़ा होने को कहा । सभी उठ खड़े हुए । एक एक कर सभी बच्चे उस अलमारी में घुसते गए । राहुल ने भी उस दरवाजे से मकान के पिछले हिस्से में प्रवेश किया । यह एक बड़ी सी जगह थी जो चारों तरफ से ऊँची ऊँची दीवारों से घिरी हुयी थी । इन दीवारों से लगे हुए तीन तरफ कुछ कमरे बने हुए थे । बीच का हिस्सा आँगन की तरह खुला हुआ था । सभी बच्चों को उस आंगन में खड़े छोड़कर वो दोनों आदमी भी चले गए । अब सभी बच्चे आँगन में ही खड़े थे । सुरज काफी ऊपर तक चढ़ आया था । थोड़ी देर तक धुप का आनंद लेने के बाद जब वही धुप असहनीय हो गया सभी किसी आसरे की तलाश में लग गए । राहुल सबसे आगे था । वह सावधानी से एक एक कमरे के सामने जाकर दरवाजे से अन्दर झांक कर देखने की कोशिश कर रहा था । सभी कमरों के दरवाजे पर बाहर से ताला लगा हुआ था । आखिर में एक कमरे में उसे दरवाजे के ऊपर एक रोशनदान दिखाई पड़ा । रोशनदान काफी उंचाई पर था । राहुल ने टीपू को अपने कंधे पर उठाया और उसे खड़े होकर कमरे में झाँक कर देखने के लिए कहा । अभी टीपू राहुल के कंधे पर खड़ा होने जा रहा था कि राहुल के कानों में कुछ कमजोर सी आवाजें सुनाई पड़ी ‘ कोई है ? हमें बचाओ ! बचाओ ! ‘
टीपू ने रोशनदान से कमरे में झांक कर देखा । अन्दर घना अँधेरा था । फिर भी टीपू ने कुछ हिलती हुयी आकृतियों से अनुमान लगाया शायद चार लडके ही होंगे । टीपू ने राहुल के कंधे पर से नीचे उतरते हुए उसे पूरी बात बताई ।
राहुल ने दरवाजे से कान लगा कर अन्दर की हलचल का जायजा लेना चाहा और जब उसके कुछ समझ में नहीं आया तब उसने थोड़ी ऊँची आवाज में पूछा ” अन्दर कोई है ? जवाब दो ! बोलो ! ”
राहुल थोड़ी देर रुका ।  अन्दर से आनेवाली आवाज को सुनने का प्रयत्न करने लगा । अन्दर से एक महीन सी आवाज काफी धीमे स्वर में उसे सुनाई पड़ी ” हां ! हम लोग चार लोग हैं । हमें बाहर निकालो । हमने पांच दिन से कुछ नहीं खाया पीया है । हमारी हालत ख़राब है । तुम जो कहोगे हम लोग करेंगे । हमें बाहर निकालो । ”
अब राहुल को समझते देर नहीं लगी कि अन्दर कुछ बच्चे हैं और निश्चित ही इन बच्चों ने गुंडों की बात मानने से इंकार कर दिया होगा । गुंडे शायद इन्हें सही रास्ते पर ले आने के लिए भूखे रखकर प्रताड़ित कर रहे होंगे ।
राहुल ने सारी वस्तुस्थिति को समझते हुए थोड़ी ऊँची आवाज में ही उन्हें धीरज बंधाते हुए कहा ” हम लोग भी तुम लोगों की ही तरह इनके शिकार है और अभी अभी लाये गए हैं । मेरी मानो तो जिद छोड़कर तुम लोग गुंडों की बात मान लो और फिर अच्छे मौके का इंतजार करो । ”
उन्हें समझा कर राहुल खामोश नहीं हुआ । वह अपनी सेना की तरफ मुड़ा । फ़िलहाल तो सभी बच्चे उसकी सेना की ही तरह थे और वह उनका अघोषित सेनापति ।  उन्हें समझाते हुए बोला ” देखो ! मैं जो बोल रहा हूँ ध्यान से सुनो ! हम इन गुंडों से ताकत से या जबरदस्ती मुकाबला नहीं कर सकते । हमें इनसे निबटने के लिये अपनी अक्ल का इस्तेमाल करना होगा । अगर हमने इनकी बात नहीं मानी तो हमारी हालत भी वही होगी या इससे भी बुरी हो सकती है जो अभी इन बच्चों की है । उनका विरोध न करते हुए हम लोग थोडा नानुकुर करके ही सही इनका काम ईमानदारी से करने का प्रयास करेंगे । कुछ ही दिनों में हम इनका भरोसा जीत लेंगे और मौका पाते ही अपना काम कर जायेंगे । बोलो ! ठीक है ? या किसी को और कुछ कहना है ? ”  कहने के बाद राहुल सब बच्चों की तरफ देखने लगा था ।

 

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।