यह क्या है !
हे विश्वास ! तुम
निर्दय, निर्मम धूर्त हो !
अपने पाँव के नीचे
हजारों सालों से
मानवता को दबाते-दबाते,
अट्टहास का विकराल नृत्य-कृत्य !
धोखेबाजी ! आघात तुम करते हो !
कुटिल नीति के जाल में
आम जनता को बंदी बनाते-बनाते,
सुख-भोग भोग की लालसा में ऊँघते,
हमारे आँसू तुम पीते हो !
धर्म-संप्रदाय का नाम लेते-लेते,
भेद-विभेद की रचना !
घूँघट-पट में
अंतर्यामी का रूप तुम हो !
भावमय-जगत के
अनंत आकाशभर में
प्रदूषण फैलाते-फैलाते,
तुम शाहबाश ! अधिष्ठाता हो !