सरोजनी प्रीतम का व्यंग्य कितना सार्थक है आज के परिपेक्ष्य में-
‘ पुस्तक मेला भी पशु मेला नजर आया .
काला अक्षर भैंस बराबर पाया . ‘
उपर्युक्त पंक्तियाँ भारतीय समाज की निरक्षरता को दर्शाती है और ग्रामीण परिवेश की बालिकों पर सटीक बैठती हैं . इक्कीसवीं सदी के हिंदु समाज में बालिकाओं के प्रति नकारात्मक सोच हावी है .लड़की के जन्म पर खुशी नहीं होती है . बालिकाओं को बोझ मान कर उनसे भेदभाव , असमानता , उत्पीडन , शोषण का व्यवहार किया जाता है . उन्हें शिक्षित करना तो दूर की बात है . वैश्विकरणके युग में भारतीय महिलाएं शैक्षिक जगत में हांसिए पर हैं . एशिया महाद्वीप भारत में महिला साक्षरता दर सबसे कम है . एक सर्वे के अनुसार भारत में आज २२. ९१ करोड़ महिलाएं अनपढ़ हैं . जो परिवार , समाज , देश के आर्थिक विकास उन्नति में बाधक है . जब हम गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए थे तब सिर्फ शिक्षा का स्तर १२ प्रतिशत था . उन्हीं बौद्धिक वर्ग के दम पर आजादी का सपना का साकार हुआ . अब साक्षरता देश की ७० प्रतिशत हो गई है . देश शिक्षा के दम पर चुनौतियों को लाँघ कर संसार से बराबरी कर रहा है .अगर एक दिन हम अखबार न पढ़े तो हम एक दिन दुनिया से पीछे हो जाते हैं . उसी तरह बालिकाओं को दुनिया की बराबरी करने के लिए शिक्षा ,संस्कार , रोजगार नितांत जरूरी है .
कहने का मतलब है कि शिक्षा वह हथियार है जिससे हम अपना सर्वांगीण विकास से भविष्य के द्वार खोलते हैं . शिक्षा हमें रोजगार की राह दिखलाती हैं . शिक्षा कई रूपों में अर्जित की जाती है .
योगी अरविन्द ने कहा – ‘ सच्चे शिक्षण का सिद्धांत यह है कि कोई भी वस्तु सिखाई नहीं जा सकती . ‘ मतलब यह है कि बच्चे का अंतर्मन को खोलना शिक्षा का काम है . अतः शिक्षा से बालिकाओं का बौद्धिक , सामाजिक , सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक विकास करें . जिससे वे देश , समाज में सकारात्मक बदलाब ला सकें . जो देश , विश्व कल्याण में अपनी भूमिका निभाएंगे .
प्राचीन काल पर नजर डालें तो शिक्षा के दम से ही गार्गी , मैत्री , मदालसा , विद्योत्मा आदि विदुषी नारियां थी . गार्गी ने यज्ञवल्क्य को शास्त्रार्थ में हरा दिया था . हमारे समाजशास्त्रियों , बुद्धिजीवियों , विचारकों ने स्त्री शिक्षा को महत्त्व दिया था .
मेरे अनुसार –
शिक्षा जगत में ज्ञान का सवेरा लाती
शिक्षा ही धरा पे संस्कारों के बीज बोती.
– मंजू गुप्ता
शिक्षा का उद्देश्य है संस्कार करना .जो एक प्रेरक दिशा निर्देश की प्रक्रिया है . जिससे जन्मजात दोषों को मुक्त कर देते हैं . संस्कार की प्रक्रिया हम सजीव – निर्जीव दोनों में कर सकते हैं जैसे हीरे को तराश कर बहुमूल्य बना देते हैं . उसी तरह शिक्षा , संस्कार के द्वारा बालिकाओं को शिक्षित कर सुनहरा भविष्य गढ़ सकते हैं . बालिका के लिए शिक्षा संस्कार , कामकाज ज्ञान का त्रिवेणी गंगा का संगम है .अगर घर में माँ पढ़ी – लिखी होगी तो पूरा परिवार पढ़ जाता है , इसलिए आज की पढ़ी – लिखी बालिका कल का भविष्य है . यही कल की माँ बनेगी . अगर बालिका शिक्षित होती है तो वह अपने लक्ष्य को पा लेती है , सर्वगुण संपन्न प्रतिभाशाली नागरिक बनेगी जो उन्हें देश प्रेम , विश्व बन्धुत्व , कर्तव्य परायणता से जोड़ेगा , समाज पूरा देश सशक्त हो जाएगा . उनमें विचार , निर्णय – शक्ति की क्षमता का विकास होगा और स्वावलंबी बनेगी .
समय ने करवट बदली . हम भौतिकवादी , प्रगतिवादी , तकनीकी प्रौद्योगिकीय युग में जी रहे हैं . परिवार, समाज राष्ट्र में बालिकाओं की शिक्षा से क्रांतिकारी परिवर्तन आए हैं . बालिकाओं को शिक्षा – दीक्षा से संस्कारित करके सुसंकृत , सभ्य समाज के योग्य बन रही हैं . सरकार द्वारा बालिकाओं को निः शुल्क शिक्षा दी जा रही है . ग्रामीण क्षेत्रों आदिवासियों , अनुसूचित जाति आदि का भी शिक्षा के प्रति रुझान हो रहा है . . ‘ बेटी बचाओ बेटी पढाओ ‘ अभियान जोरो पर है .जिससे बालिकाएं शिक्षित , स्वाबलंबी , सशक्त होकर भावी माताएं बन आने वाली नस्ल की सुदृढ़ नींव बन परिवार , समाज देश की प्रगति , विकास , नव निर्माण करेंगी . इन्हीं में से कोई कल्पना , किरन , इंदिरा , प्रतिभा पाटिल और सानिया बनेगी . लडकियों के शिक्षित होने से घर बाहर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं . अंतरिक्ष पे देश की बेटियाँ भावना , मोहना, अवनि महिला फाइटर बन देश का नाम रोशन कर रही हैं .ऑलंपिक खेलों में पीटी उषा , सानिया आदि नाम भारत का गौरव बढाते हैं . हाल ही में कुश्ती में साक्षी ने ऑलंपिक खेल में कास्य पदक ले अन्य लड़कियों के लिए रास्ता खोल दिया . हरियाणा के कुश्तीबाज बाज महावीर ने अपनी दो बेटीयों को कुश्ती के खेल में संस्कारित कर बबीता – गीता को अंतर्राष्ट्रीय कुश्तीबाज बनाया . बालिका शिक्षा जो आधी आबादी का आकाश है , उन्हें समाज , देश की उन्नति करने के लिए पढ़ाना जरुरी है . तभी महिला शक्ति बन पुरुषों को चुनौती दें सकेंगी . कल का नेतृत्व , नई तकनीक की खोज करेंगी . साथ में हम सब दृढ़संकल्प करें कि इक्कीसवीं सदी में हमारे देश की बालिकाएं शत – प्रतिशत साक्षर हो जाएंगी . जो भारत के सुनहरे भविष्य का आगाज करेंगी .