सपनों की दुनिया
आशु! आशु!
माँ कब से आवाज़े लगा रही थी, पर आशु सपनों की दुनिया में ही खोया हुआ था। आशु तो बस सोते जागते सपनों में ही खोया रहता था, और बातों के हवाई किले बनाता था कि मुझे तो डॉक्टर बनना है,यह छोटे छोटे इम्तिहान तो मेरे बाँए हाथ का खेल है। माँ ने बहुत समझाया कि बेटा सिर्फ ऊँचे सपने देखने से मंज़िल नहीं मिलती पर इन्सान को उन्हें पाने के लिए मेहनत भी करनी पड़ती है और हर इम्तिहान को संजीदगी से ही लेना पड़ता है। आशु के नवीं के इम्तिहान सिर पर थे पर आशु को यह बहुत आसान लगता था वो सोचता कि यह कौन सी बड़ी बात है, उसे तो डॉक्टरी की सीट निकालनी थी। माँ आशु की लापरवाही से बहुत परेशान थी पर आशु कहां समझता था कि हर कक्षा का अपना महत्व है और उसके लिए मेहनत करना भी ज़रुरी है। जब तक हम पहली सीढ़ी ही नहीं चड़ेंगे तो ऊपर नहीं पहुंच पाएंगे। पापा को भी लगता था आशु के सपने इतने बड़े हैं वो शायद उन्हें पाने के लिए उतना ही फिक्रमंद भी होगा। आशु तो लापरवाही से काम कर रहा था, फिर क्या था? नतीजा भी वैसा ही आया और आशु नवीं कक्षा में एक विषय में कुछ अंको से रह गया। आशु को अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वो नवीं कक्षा में ए्क विषय में रह गया है। पर सच यही था आशु सपनों की दुनिया से बाहर आ चुका था और सपनों को हकीकत में बदलने के लिए जागरुक भी हो गया था ठोकर तो लगी थी पर फिर भी संभलने का एक मौका मिल गया था स्कूल टीचर ने उससे और उसकी माँ के विश्वास दिलाने पर उसे अगली कक्षा में दाखिला दे दिया था और उस विषय का उसको फिर से इम्तिहान देना था। अब तो आशु सिर्फ मेहनत पर ही विश्वास करता था और यही कहता था माँ मैं सिर्फ मेहनत करुंगा क्योंकि मंज़िल चाहे छोटी हो या बड़ी, सपने छोटे हों या बड़े उन्हें सच करने के लिए हमें सच्चे दिल से कर्म भी करने पड़ते हैं सिर्फ बातों से काम नहीं बनता न ही सोचने से। आशु का जीने का नज़रिया बदल चुका था अब वो हकीकत की बात करता था।