उपन्यास अंश

आजादी भाग –२१

आजादी                 भाग –२१

” लेकिन एक शंका है । ” ,अचानक मोहन की आवाज सुनकर राहुल उसकी तरफ घूम गया था ।
” हां ! हाँ ! कहो ! क्या कहना चाहते हो ? “राहुल ने पूछा ।
” मैं ये कहना चाह रहा था कि क्या यह जरुरी है कि हम जैसा अंदाजा लगा रहे हैं वैसा ही होगा ? ” मोहन ने अपने मन की आशंका व्यक्त की ।
राहुल उसकी बात सुनकर हौले से मुस्कुराया और मोहन को समझाने वाले अंदाज में बोला ” तुम ठीक कह रहे हो ! यह भी हो सकता है कि जैसा हम सोच रहे हैं वैसा न हो । लेकिन यह जरुर होगा कि वो हमें वह काम करने के लिए कहें जो हम नहीं करना चाहते । “

कहकर राहुल एक क्षण के लिए रुका और मोहन के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करते हुए आगे कहना शुरू किया , ” लेकिन हमें ध्यान रखना है विरोध करने की बजाय हमें हल्की सी नाराजगी दिखाते हुए बेमन से ही सही वही करना चाहिए जो वो लोग हमें करने के लिए कहें । अगर इनका कहा नहीं माने तो ये नतीजे जो इस कमरे में बंद हैं । देख लो ! इसके उलट अगर इनका कहा हम करते रहे तो बहुत जल्द इन्हें यह गलतफहमी हो सकती है कि हम इनके साथ हैं और तब हमें कोई मौका भी मिल सकता है । समझ गए ? ”
मोहन ने सब कुछ समझ में आ जाने का भाव दर्शाते हुए सहमति में अपना सीर हिलाया । सभी बच्चों ने एक स्वर से राहुल से सहमति जताई । राहुल ने आगे और कहा ” एक बात का हमें और ध्यान रखना होगा । हम उनके किसी आदमी के सामने आपस में बात नहीं करेंगे और न ही आपसी पहचान जाहिर करेंगे । कोई जरुरी बात होगी तो मैं स्वयं ही मौका देखकर संपर्क करूँगा । अब हम उनके सामने अनजानों की तरह ही रहेंगे । ठीक है ? ”
सबकी सहमति पाकर राहुल उत्साहित था । अब उसे ऐसा लग रहा था कि अगर वह अपने मकसद में कामयाब रहा तो कितना बड़ा काम हो जायेगा ।
तभी कुछ आहट सुनकर सभी खामोश हो गए और उस आंगन में ही अलग थलग होकर खड़े हो गए । उन्हें देखकर ऐसा कोई नहीं कह सकता था कि अभी थोड़ी देर पहले यह सभी आपस में विचारविमर्श कर रहे थे ।
वही दोनों आदमी थे जो आखिर में उन्हें छोड़कर गए थे । इन बच्चों पर नजर डालते हुए दोनों उस रोशनदान वाले कमरे के सामने पहुँच गए और उस कमरे का दरवाजा खोलने लगे ।
दरवाजा खोलकर दोनों उस कमरे में घुस गए । राहुल ध्यान से उनके सभी क्रियाकलापों को देख रहा था । थोड़ी ही देर में दोनों बाहर आये लेकिन इस बार दोनों खाली हाथ नहीं थे । दोनों ने अपने हाथों से एक एक छोटे बच्चे को पकड़ रखा था जिन्हें बाँहों से पकड़कर घसीटते हुए बाहर लाये और मैदान में झटक कर पुनः अन्दर चले गए । शायद और भी बच्चे हो । कुछ ही पलों में वो दुबारा बाहर थे और उनके हाथों में एक एक बच्चे थे जिन्हें वो घसीटते हुए ही बाहर ले आये ।
राहुल ने अपने साथियों की तरफ देखा मानो इशारों में ही कह रहा हो ‘ देखो ! यह है इनकी बात न मानने का नतीजा ! ‘
चारों बच्चे जिन्हें कमरे से निकाला गया था लगभग पांच से सात वर्ष की अवस्था के थे और अर्धबेहोशी की हालत में थे । उनमें से जो सबसे बड़ा लड़का था रोहित आँखें खोलते हुए अपनी जीभ होठों पर फेरते हुए बुदबुदाया ” पानी ! पानी ! ”
कुटिल हंसी हंसते हुए उनमें से एक ने रोहित के बालों को पकड़कर उसे झकझोरते हुए पुछा ” पहले बोल ! हम जो कहेंगे करेगा ? ”
एकदम मरियल सी आवाज राहुल ने सुनी ” हां ! हाँ ! तुम जो कहोगे हम कहेंगे । पानी पीला दो । ”
तब तक दुसरे आदमी ने पानी का एक घडा लाकर उनके नजदीक रख दिया था । चारों को एक एक गिलास पानी देने के बाद एक पुराने अखबार में लपेट कर रखी हुयी सूखी चपाती उनके सामने रख दिया गया । सभी काफी कमजोर हो गए थे । कई दिन के भूखे  बच्चे उन सूखी चपातियों पर टूट पड़े । अब उनकी जान में जान आई लग रही थी । उन्होंने विस्मय से राहुल और उसके साथियों की तरफ देखा । रोहित ने उनकी तरफ देखते हुए बड़े धीमे स्वर में कहा ” ,लगता है तुम लोग अभी अभी यहाँ आ रहे हो । लेकिन एक बात कहना चाहूँगा । यहाँ किसी बात के लिए ना नहीं कहना । क्योंकि हां तो तुम्हें कहना ही पड़ेगा । चाहे सीधे सीधे हां कह दो या फिर हमारी तरह भुगत कर । मैं समझता हूँ तुम लोग होशियार हो । विरोध करने से पहले हमारा अंजाम देख लो । यहाँ एक बार जो आया वह यहीं का होकर रह जाता है ।”
नजदीक ही खड़ा उन दोनों गुंडों में से एक रोहित की बातें सुनकर मुस्कुरा रहा था । अचानक दूसरे गुंडे ने पहले वाले के कंधे पर हाथ मारते हुए कहा ” अबे स्साले ! अब यहीं रहेगा क्या ? भूल गया भाई ने क्या  कहा था ? ”
दूसरा चौंकते हुए बोला ” हाँ ! हाँ ! चल हमें जानकी सिग्नल के पास जाने के लिए कहा है भाई ने और अब समय भी हो गया है । चल ! ”
दोनों जैसे आये थे वैसे ही उसी एकमात्र दरवाजे से उस कमरे में और फिर बाहर निकल गए ।
उनके जाने के बाद राहुल उठा और रोहित के पास गया । रोहित काफी कमजोर लग रहा था । उसके साथ के तीन अन्य लड़कों की हालत भी कुछ अच्छी नहीं थी । उनके पास बैठते हुए राहुल ने रोहित की तरफ देखते हुए आत्मीयता से पुछा ” तुम लोग यहाँ कितने दिनों से बंद हो मित्र ? और कहाँ से हो ? तुम्हारा क्या नाम है ? ”
” मित्र ! मेरा नाम रोहित है और मैं रामपुर का रहनेवाला हूँ । हम लोग यहाँ पर अलग अलग आये लेकिन पिछले

चार दिन से सभी साथ में ही इस कमरे में बंद हैं । आज पांचवें दिन हमें कुछ खाने को मिला है । ” कहते हुए रोहित थोड़ी देर के लिए रुका ।
इससे पहले कि रोहित और कुछ कहता राहुल ने पूछ लिया ” क्यों ? ऐसा क्या कर दिया था तुम लोगों ने कि इतनी बेरहमी से तुम लोगों को इस अँधेरे कमरे में ठूंस दिया था इन लोगों ने ? ”  राहुल रोहित को कुरेदकर यहाँ के बारे में कुछ जानकारी हासिल करना चाहता था ।
रोहित ने एक गहरी सांस ली और बोला ” यहाँ हम लोग  या फिर कोई भी क्या कर सकता है ? हम लोगों ने वही तो नहीं किया जो ये लोग चाहते थे । ”
” ऐसा क्या करवाना चाहते थे ये लोग जो तुम लोग नहीं करना चाहते थे ? ” राहुल ने फिर कुरेदा ।
” अब क्या बताऊँ भैया ! हम लोग कभी सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि ऐसा भी करना पड़ेगा कभी जिंदगी में जो काम हमें बताया जा रहा था । लेकिन अब लगता है और कोई चारा नहीं है । हमें वही सब करना पड़ेगा । ” रोहित सांस लेने के लिए रुका था ।
लेकिन राहुल वह काम जानने के लिए कुछ ज्यादा ही अधीर नजर आ रहा था । थोड़े उतावलेपन से ही बोल पड़ा ” लेकिन रोहित ! तुमने यह तो बताया ही नहीं कि वह कौन सा काम था जिसके लिए तुम लोगो ने मना कर दिया था ? “

रोहित मुस्कुराया ” वही ! जिससे मैं सबसे ज्यादा घृणा करता हूँ । भीख मांगना और उसके बाद यहाँ आकर पाकेटमारी का प्रशिक्षण हासिल करना । जरा सोचो ! बाहर जाने से पहले ये हमारी हुलिया पूरी तरह बदल देंगे ऐसा कि पहली बार देखकर अपने घरवाले भी नहीं पहचान पायें । तन पर मिटटी और मैले कुचैले चिथड़े पहनाकर किसी बड़े आदमी को अँधा बनाकर उनके साथ भीख माँगने भेज देंगे और खुद हमारे आसपास छिपे रहेंगे ताकि हम कहीं अपनी मर्जी से कुछ खर्च न करने लगें । “

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।