लघुकथा

आशा

” इरा, अगर दीदी समूह में शामिल होकर तुम्हारीे लघकथाएं पढ रही हैं तो मैं क्या कर सकता हूँ ? हाँ एक सुझाव जरूर दूँगा, तुम उन्हें ब्लाॅक कर दो फिर तुम्हें दिक्कत नहीं होगी ।” मानव बोला।
“नहीं , उन्हें ब्लाॅक करने के बजाय लिखना ही छोड देती हूँ ।”
” ये तो ठीक नहीं होगा… वैसे ही बडी मुश्किल से लेखन से जुड़ने के बाद मिलने वाली खुशी से तुम्हारा डिप्रेशन कुछ कम हुआ है अब तुम कुछ लोगों की वजह से..।”
” मानव लघुकथा जिंदगी में मिलने वाले अनुभवों पर लिखी जाती हैं जो किसी की भी जिंदगी से जुड़ी हो सकती है, परन्तु दीदी हमेशा की तरह कहीं अपने ऊपर लेे लें और कुछ बुरा मान जाएँ तो ?”
” इरा, आज दीदी हैं तो कल कोई और होगा जो तुम्हारे मार्ग में रुकावट बने। जीवन की राहें भी किसी जलते-बुझते जुगनू की तरह होती हैं। कभी आशा का उजियारा तो कभी निराशा का अंधेरा, मगर तुम्हें अपने हौसले की बुलंदी से जीवन के मार्ग पर अपने लक्ष्य की तरफ बढते जाना है।”

संयोगिता शर्मा

जन्म स्थान- अलीगढ (उत्तर प्रदेश) शिक्षा- राजस्थान में(हिन्दी साहित्य में एम .ए) वर्तमान में इलाहाबाद में निवास रूचि- नये और पुराने गाने सुनना, साहित्यिक कथाएं पढना और साहित्यिक शहर इलाहाबाद में रहते हुए लेखन की शुरुआत करना।