कहानी

नींव

नीता का पारा चढ़ा हुआ था. विवेक नीता की नाराज़गी समझ रहा था. उसे मनाते हुए बोला “अब अपना मूड खराब मत करो. हंसो बोलो.”
नीता ने घूर कर देखा फिर गुस्से से बोली “मुझे दो चेहरे रखने नही आते हैं. मेरा मूड खराब है और वह दिखेगा भी.”
“मूड खराब कर क्या मिलेगा.” धीरे से बात चीत से हल निकल आएगा.
“उस दिन बॉलकनी की छत का प्लास्टर टूट कर गिर गया. कुछ क्षण पहले गिरता तो बबलू चोटिल हो जाता. धीरे धीरे के चक्कर में एक दिन छत सिर पर गिर जाएगी.” नीता ने कटाक्ष किया.
कुछ सोंच कर विवेक बोला “ठीक है घर की मरम्मत और रंग रोगन करवा लेता हूँ.”
“जो मर्ज़ी करिए. पर इस पुराने मकान की नींव ही कमज़ोर हो गई है. क्या फायदा होगा.” नीता यह कहते हुए रसोंई में चली गई.
विवेक सोचने लगा कि नीता भी अपनी जगह सही है. मकान बहुत पुराना हो गया है. सालों से इसकी मरम्मत व पुताई भी नही हुई है. इतने बड़े भवन के रंग रोगन पर खर्च भी तो बहुत आता है. पीछे बागीचे के लिए कितनी जगह बेकार पड़ी है. अब कौन करे बागबानी. ना ही समय है और ना ही इतना पैसा.
मकान बड़ा था पर अधिकांश हिस्सा सही देखभाल के कारण प्रयोग के लायक नही रह गया था. फिर तीन प्राणियों को जगह भी कितनी चाहिए थी. बबलू भी दसवीं कर चुका था. उसकी इचछा इंजीनियर बनने की थी. उसकी पढ़ाई के लिए काफी पैसे की ज़रूरत पड़ेगी. प्रस्ताव मान लेने में कोई हानि नही थी. पर बड़े भइया ना मानने पर अड़े थे.
‘गंगा सदन’ करीब सत्तर साल पहले विवेक के दादजी ने बनवाया था. उनके पिता की मृत्यु के बाद यह घर विवेक और उसके बड़े भाई को मिला था. नीचे का हिस्सा बड़े भाई का था और ऊपर विवेक अपने परिवार के साथ रहता था.
स्थान के हिसाब से मकान की स्थिति बहुत अच्छी थी. इसी कारण कुछ दिन पहले एक बिल्डर ने इस मकान को खरीदने की इच्छा जताई. उसने प्रस्ताव दिया था कि यहाँ बनने वाली बहुमंज़िला इमारत में दोनों भाइयों को एक एक फ्लैट और कुछ रुपये दिए जाएंगे. नीता को यह प्रस्ताव बहुत पसंद आया था. परंतु उसके बड़े भाई राज़ी नही थे. उनका कहना था कि यह पुरखों की निशानी है. आज के समय में इतनी जगह कहाँ मिलती है. यहाँ खुलापन है. फ्लैट में तो बंद रहना पड़ेगा. वह चाहते थे कि दोनों भाई मिल कर उसकी देख रेख करें.
विवेक उनकी बात से इत्तेफ़ाक नही रखता था. किंतु नीता खुले रूप में इस फैसले के खिलाफ थी. उसका कहना था कि जेठ जी की तो सारी ज़िम्मेदारियां निपट चुकी हैं. पर उन्हें तो अभी बबलू के भविष्य के लिए सोंचना है. फिर पुराने पड़ते इस मकान में कब तक रहेंगे. यदि बिल्डर की बात मान लें तो पैसे भी मिलेंगे और फ्लैट भी.
विवेक नीता के पास गया. वह खाना बना कर आराम कर रही थी. उसके पास बैठ कर वह बोला “तुम ठीक कहती हो. बबलू के भविष्य के लिए हमें साफ साफ बात करनी ही पड़ेगी. कल संडे है. सुबह ही मैं भइया से बात करता हूँ.”
नीता के चेहरे पर खुशी झलकने लगी.

*आशीष कुमार त्रिवेदी

नाम :- आशीष कुमार त्रिवेदी पता :- C-2072 Indira nagar Lucknow -226016 मैं कहानी, लघु कथा, लेख लिखता हूँ. मेरी एक कहानी म. प्र, से प्रकाशित सत्य की मशाल पत्रिका में छपी है