गीत : प्यार है गुनाह तो गुनाह चाहती हूँ
गर प्यार है गुनाह तो मैं गुनाह चाहती हूँ
सपनो से भरी आँखों में पनाह चाहती हूँ
वो मुराद मेरी मौला, मेरे नाम कर दे उसको
किस्मत मेरी बना दे या फ़ना कर दे मुझको
मैं जानती नही हूँ सच क्या, मैं चाहती हूँ
बस ये पता है उसको, बेपनाह चाहती हूँ
गर प्यार है गुनाह तो मैं गुनाह चाहती हूँ
हो ख़ुशी मेरी और लब उसके मुस्कुराये
हो गम उसको तो, आँख नम मेरी हो जाए
दर पर उसके करना मैं सजदा चाहती हूँ
सवाब में इक प्रेम की निगाह चाहती हूँ
गर प्यार है गुनाह तो मैं गुनाह चाहती हूँ
बन शबनम फूलों की मैं उसके लब छू लूँ
नयनो में सज कर पलकों का झूला झूलूँ
मैं प्रेम के वेदों को फिर गढ़ना चाहती हूँ
अपने किये गुनाहों का इस्लाह चाहती हूँ
गर प्यार है गुनाह तो मैं गुनाह चाहती हूँ
मेरे हाथो का कंगन मेरे माथे की बिंदिया
मेरे पैरो की पायल, हो चाहे मेरी बिछिया
शृंगार पूरा उससे ही मैं करना चाहती हूँ
कुछ और नहीं बस प्रेम की राह चाहती हूँ
गर प्यार है गुनाह तो मैं गुनाह चाहती हूँ।