संस्मरण

संस्मरण रसूूलपुर की गंगा

 
जी हाँ! मैं रसूलपुर में स्थापित महादेवी वर्मा की साहित्यकार संसद की ही बात कर रही हूँ। मेरे लिए वह क्षण विलक्षण ही था जिस क्षण मैंने वहाँ कविता पाठ किया, परन्तु वहाँ तक पहुँचने के लिए मुझे साहित्य सम्मेलन प्रयाग के प्रधानमंत्री श्रीधर शास्त्री जी का कोपभाजन बनना पड़ा वह भी एक कभी न भूलने वाली घटना है।
करुणेश जी से मेरा परिचय डाॅ. यास्मीन सुल्ताना नक़वी के आवास पर हुआ था। वहीं एक गोष्ठी में करुणेश ने मेरा गीत सुना था। डाॅ. यास्मीन ने ही मुझे बताया था कि महादेवी वर्मा करुणेश को पुत्रवत् मानती थीं। यास्मीन स्वयं भी तो महादेवी वर्मा की छात्रा रही हैं और वह अक्सर ही कहती हैं कि उन्होंने ही उसे कविता की ओर प्रेरित किया था। रसूलपुर में महादेवी ने एक बहुत बड़ा भवन बनाया है, जिसका नाम साहित्यकार संसद रखा गया है। इस भवन में बहुत से कक्ष हैं। कोई भी साहित्यकार आकर वहाँ ठहर सकता है। इसके अतिरिक्त किसी भी साहित्यिक आयोजन की वहाँ व्यवस्था की जा सकती है।
वर्ष तो याद नहीं परन्तु वह हिन्दी दिवस का अवसर था यह तो समृति में है। साहित्य सम्मेलन प्रयाग के प्रधानमंत्री श्रीधर शास्त्री जी ने चार दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया था। शास्त्री जी से अक्सर ही मेरी तनातनी रहती थी फिर भी मुझे वहाँ से निमन्त्रण अवश्य ही आता था, इस बार भी था। वहाँ से मार्गव्यय भी मिलता था। आर्थिक तंगी भी थी ही, ऐसे माहौल में मुझे साहित्यकार संसद से निमन्त्रण मिला जिसमें मुझे 800/- देने की बात कही गई थी। यह कार्यक्रम भी हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में ही था परन्तु तिथियाँ टकराती नहीं थीं इसलिए मुझे लगा कि मार्गव्यय तो मुझे शास्त्री जी दे ही देंगे, ये 800/- रुपए मेरी अतिरिक्त आय हो जाएगी अतः मैंने स्वीड्डति भेज दी और समय पर इलाहाबाद पहुँच कर श्रीधर शास्त्री के कार्यकर्ताओं को सूचना दी। कार्यक्रम आरम्भ होने वाला ही था। श्रीधर शास्त्री अपने अभद्र व्यवहार के लिए प्रसिद्ध थे। कार्यक्रम के प्रारम्भ होने के पश्चात् आने वाले साहित्यकारों को वे बिना झिझक अपमानित भी कर देते थे। अतः अपमान से बचने के लिए, मैं बिना लम्बी यात्रा की थकन उतारे ही सभागार में जा पहुँची। कुर्सियाँ लगभग भर चुकी थीं, परन्तु आगे की पंक्ति में स्थान था।
सामान दिए गए कक्ष में रखकर मैं सभागार में आकर सामने लगे सोफे पर बैठ गई। थोड़ी ही देर बाद श्रीधर शास्त्री भी घूमते-घूमते मेरे पास आकर बैठते हुए पूछने लगे, ‘‘में यहाँ बैठ सकता हूँ क्या?’’
मैं सिवाय थोड़ा खिसकने के और क्या कह सकती थी? मुझे लगा शायद वे मुझे विलम्ब से आने के लिए कुछ उल्टा-सीधा अवश्य कहेंगे, परन्तु शिमला से इलाहाबाद की यात्रा में विलम्ब का कार रेलगाड़ी थी। अपने सवभाव के विपरीत उन्होंने मुझसे मेरी यात्रा कैसी रही पूछा। फिर तनिक रुककर वे कहने लगे, ‘‘हमने सुना है, तुम करुणेश के यहाँ भी कविता पाठ करने वाली हो?’’
‘‘जी! आपने ठीक सुना है, मुझे वहाँ से भी निमन्त्रण है।’’
‘‘तो ठीक है, हमारी बात भी सुन लो। तुम एक ही स्थान पर पढ़ोगी। चाहे तो यहाँ पढ़ो और चाहे वहाँ पढ़ो।’’ इतना कहकर शास्त्री जी तो वहाँ से उठकर चले गए परन्तु मारे क्रोध के मेरा दिमाग भिन्ना गया। बहुत सारे साहित्यक मित्र, जो मुझसे मिलने के लिए ही वहाँ आए थे उनसे भी बात करते नहीं बन पा रहा था, फिर भी वहाँ से उठती कि तभी शास्त्री जी फिर आकर मेरे पास बैठ गए, ‘‘तुम्हें शायद बुरा लगा होगा।’’
‘‘नहीं…।’’ कहकर मैं मंच पर बोलने वाले को सुनने लगी, तो वे फिर कहने लगे, ‘‘तुम्हें हम कह सकते हैं। तुम श्रेयसि हो, प्रेयसि…..’’
‘‘रुकिए शास्त्री जी, श्रेयसि तक तो ठीक परन्तु आपने मुझे प्रेयसि किस आधार पर कह दिया? आप कहने से पहले सोच तो लिया कीजिए कि क्या कह रहे हैं और किसे कह रहे हैं। कैसे कह रहे हैं आप मुझे प्रेयसि? वह भी भरी सभा में।’’
‘‘तो क्या तुम्हें कोई उठाकर ले जाने वाला है, जिसे जलन होगी?’’
‘‘मुझे कोई क्या खाकर उठा ले जाएगा? इस सभा में तो कोई माई का लाल ऐसा है नहीं, परन्तु आज आप अभद्रता की हद पार कर गए हैं। मैं आपके विषय में ऐसा नहीं सोचती थी।’’ कहकर मैं वहाँ से उठकर सबसे पीछे वाली कुर्सियों पर जा बैठी। मेरा चेहरा मारे क्रोध के तमतमा रहा था।
फूलपुर के डाॅ. उमाशंकर शुक्ल ‘उमेश’, काव्यगंगा के सम्पादक स्वामी श्यामानन्द सरस्वती एवं अन्य बहुत से लेखक जो इस विवाद के प्रत्यक्षदर्शी थे, मेरे पास आ बैठे। मुझे ऐसा लग रहा था मानों सबकी आँखें मेरी ही तरफ लगी हों। डाॅ. उमेश का हाथ पकड़कर मैं बाहर ले आई। वे मुझे शान्त करने का प्रयास लगातार कर रहे थे। बाहर आकर मैंने करुणेश को फोन किया और कहा कि ‘‘मैं रसूलपुर अकेली नहीं आ सकती क्योंकि वह इलाका मेरा देखा हुआ नहीं है। किसी को लेने भेज दो।’’ और जाकर उस कमरे में बैठ गई जिसमें मेरा सामान रखा हुआ था। थोड़ी ही देर में रिक्शा आ गया और डाॅ. उमेश ने मुझे दुखी मन से विदा किया, क्योंकि वे समारोह में मेरे साथ थोड़ा समय व्यतीत करना चाह रहे थे, परन्तु मुझसे अपना क्रोध सँभाले सँभल नहीं रहा था। किसी अन्य से झगड़ा हो जाए इससे अच्छा वहाँ से चले जाना ही था।
दूसरे दिन ही रसूलपुर में कार्यक्रम था। अब तक मैंने स्वयं को संयत कर लिया था। जब अपने कक्ष से मैं कार्यक्रम स्थल पर पहुँची तो मैंने देखा, कार्यक्रम खुले में था, सामने गंगा का अनन्त विस्तार और दूसरी ओर श्रोताओं का विस्तार। अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। इतना अपार जनसमूह! श्रोताओं की गंगा की ओर पीठ थी परन्तु मंचासीन कवियों को गंगा दर्शन सुलभ थे।
एक से बढ़कर एक सरस और मधुर गीतों का पाठ हो रहा था। जब मेरा नाम लेकर कविता पाठ के लिए पुकारा गया तो मेरा कण्ठ अवरु( हो रहा था। आँखें उमड़ी आ रही थीं। स्वभावतः में मंच पर बिना भूमिका बाँधे ही काव्य पाठ करती हूँ, परन्तु उस दिन मेरे उद्गार सँभाले नहीं सँभल रहे थे। मैंने कहा, ‘‘महादेवी वर्मा तो तब से ही मेरे सपनों की देवी थीं जब मैं उन्हें अपनी पाठ्य-पुस्तकों में पढ़ती थी। उस समय तो यह सोचा भी नहीं था कि मैं कभी उस धरती को छू सकूँगी जिस पर उनके चरण पड़े थे। आज मैं धन्य हो गई। करुणेश जी की )णी हूँ, जिनकी ड्डपा से यह सुअवसर हाथ आया है। पता नहीं कैसा पढ़ँूगी परन्तु उनकी चरणरज से मेरा तो जीवन सुधर गया।’’ कहकर मैंने झुककर मिट्टी उठाई और माथे पर लगा ली। सारा पण्डाल तालियों से गूँज गया। मैं नहीं जानती कि मैंने वहाँ क्या पढ़ा और कैसा पढ़ा परन्तु इतना जानती हूँ कि मंच से उतरने पर बहुत सारे विद्वतजनों के हाथ मेरे सिर पर थे। तक मेरी आयु बहुत अधिक नहीं थी।
कार्यक्रम समाप्त हो जाने के बाद में यास्मीन के घर चली गई। वहाँ डाॅ. अब्दुल हई भी ठहरे हुए थे। उन्होंने मुझे बताया कि रात को सम्मान के लिए मेरा नाम बार-बार पुकारा गया। निखत बेगम ने भी गिला किया और कहा, ‘‘मैं स्वयं आपके लिए शाॅल खरीद कर लाई थी। आप ने ऐसा क्यों किया? शास्त्री जी तो ऐसे ही हैं, किसी को भी कुछ भी कह देते हैं। आपको उनसे नाराज़ नहीं होना चाहिए था।’’
शास्त्री जी से नाराज़ होने के कारण मुझे आर्थिक हानि तो हुई परन्तु जो सन्तोष मुझे महादेवी के आँगन में वह भी गंगा किनारे कविता पढ़कर मिला उसके मुकाबले वह चार पैसे कुछ भी महत्व नहीं रखते।

*आशा शैली

जन्मः-ः 2 अगस्त 1942 जन्मस्थानः-ः‘अस्मान खट्टड़’ (रावलपिण्डी, अब पाकिस्तान में) मातृभाषाः-ःपंजाबी शिक्षा ः-ललित महिला विद्यालय हल्द्वानी से हाईस्कूल, प्रयाग महिलाविद्यापीठ से विद्याविनोदिनी, कहानी लेखन महाविद्यालय अम्बाला छावनी से कहानी लेखन और पत्रकारिता महाविद्यालय दिल्ली से पत्रकारिता। लेखन विधाः-ः कविता, कहानी, गीत, ग़ज़ल, शोधलेख, लघुकथा, समीक्षा, व्यंग्य, उपन्यास, नाटक एवं अनुवाद भाषाः-ः हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, पहाड़ी (महासवी एवं डोगरी) एवं ओडि़या। प्रकाशित पुस्तकंेः-1.काँटों का नीड़ (काव्य संग्रह), (प्रथम संस्करण 1992, द्वितीय 1994, तृतीय 1997) 2.एक और द्रौपदी (काव्य संग्रह 1993) 3.सागर से पर्वत तक (ओडि़या से हिन्दी में काव्यानुवाद) प्रकाशन वर्ष (2001) 4.शजर-ए-तन्हा (उर्दू ग़ज़ल संग्रह-2001) 5.एक और द्रौपदी का बांग्ला में अनुवाद (अरु एक द्रौपदी नाम से 2001), 6.प्रभात की उर्मियाँ (लघुकथा संग्रह-2005) 7.दादी कहो कहानी (लोककथा संग्रह, प्रथम संस्करण-2006, द्वितीय संस्करण-2009), 8.गर्द के नीचे (हिमाचल के स्वतन्त्रता सेनानियों की जीवनियाँ-2007), 9.हमारी लोक कथाएं भाग एक से भाग छः तक (2007) 10.हिमाचल बोलता है (हिमाचल कला-संस्कृति पर लेख-2009) 11. सूरज चाचा (बाल कविता संकलन-2010) 12.पीर पर्वत (गीत संग्रह-2011) 13. आधुनिक नारी कहाँ जीती कहाँ हारी (नारी विषयक लेख-2011) 14. ढलते सूरज की उदासियाँ (कहानी संग्रह-2013) 15 छाया देवदार की (उपन्यास-2014) 16 द्वंद के शिखर, (कहानी संग्रह) प्रेस में प्रकाशनाधीन पुस्तकेंः-द्वंद के शिखर, (कहानी संग्रह), सुधि की सुगन्ध (कविता संग्रह), गीत संग्रह, बच्चो सुनो बाल उपन्यास व अन्य साहित्य, वे दिन (संस्मरण), ग़ज़ल संग्रह, ‘हण मैं लिक्खा करनी’ पहाड़ी कविता संग्रह, ‘पारस’ उपन्यास आदि उपलब्धियाँः-देश-विदेश की पत्रिकाओं में रचनाएँ निरंतर प्रकाशित, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के विभिन्न केन्द्रों से निरंतर प्रसारण, भारत के विभिन्न प्रान्तों के साहित्य मंचों से निरंतर काव्यपाठ, विचार मंचों द्वारा संचालित विचार गोष्ठियों में प्रतिभागिता। सम्मानः-पत्रकारिता द्वारा दलित गतिविधियों के लिए अ.भा. दलित साहित्य अकादमी द्वारा अम्बेदकर फैलोशिप (1992), साहित्य शिक्षा कला संस्कृति अकादमी परियाँवां (प्रतापगढ़) द्वारा साहित्यश्री’ (1994) अ.भा. दलित साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा अम्बेदकर ‘विशिष्ट सेवा पुरुस्कार’ (1994), शिक्षा साहित्य कला विकास समिति बहराइच द्वारा ‘काव्य श्री’, कजरा इण्टरनेशनल फि़ल्मस् गोंडा द्वारा ‘कलाश्री (1996), काव्यधारा रामपुर द्वारा ‘सारस्वत’ उपाधि (1996), अखिल भारतीय गीता मेला कानपुर द्वारा ‘काव्यश्री’ के साथ रजत पदक (1996), बाल कल्याण परिषद द्वारा सारस्वत सम्मान (1996), भाषा साहित्य सम्मेलन भोपाल द्वारा ‘साहित्यश्री’ (1996), पानीपत अकादमी द्वारा आचार्य की उपाधि (1997), साहित्य कला संस्थान आरा-बिहार से साहित्य रत्नाकर की उपाधि (1998), युवा साहित्य मण्डल गा़जि़याबाद से ‘साहित्य मनीषी’ की मानद उपाधि (1998), साहित्य शिक्षा कला संस्कृति अकादमी परियाँवां से आचार्य ‘महावीर प्रसाद द्विवेदी’ सम्मान (1998), ‘काव्य किरीट’ खजनी गोरखपुर से (1998), दुर्गावती फैलोशिप’, अ.भ. लेखक मंच शाहपुर (जयपुर) से (1999), ‘डाकण’ कहानी पर दिशा साहित्य मंच पठानकोट से (1999) विशेष सम्मान, हब्बा खातून सम्मान ग़ज़ल लेखन के लिए टैगोर मंच रायबरेली से (2000)। पंकस (पंजाब कला संस्कृति) अकादमी जालंधर द्वारा कविता सम्मान (2000) अनोखा विश्वास, इन्दौर से भाषा साहित्य रत्नाकर सम्मान (2006)। बाल साहित्य हेतु अभिव्यंजना सम्मान फर्रुखाबाद से (2006), वाग्विदाम्बरा सम्मान हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से (2006), हिन्दी भाषा भूषण सम्मान श्रीनाथद्वारा (राज.2006), बाल साहित्यश्री खटीमा उत्तरांचल (2006), हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा महादेवी वर्मा सम्मान, (2007) में। हिन्दी भाषा सम्मेलन पटियाला द्वारा हज़ारी प्रसाद द्विवेदी सम्मान (2008), साहित्य मण्डल श्रीनाथद्वारा (राज.) सम्पादक रत्न (2009), दादी कहो कहानी पुस्तक पर पं. हरिप्रसाद पाठक सम्मान (मथुरा), नारद सम्मान-हल्द्वानी जिला नैनीताल द्वारा (2010), स्वतंत्रता सेनानी दादा श्याम बिहारी चैबे स्मृति सम्मान (भोपाल) म.प्रदेश. तुलसी साहित्य अकादमी द्वारा (2010)। विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ द्वारा भारतीय भाषा रत्न (2011), उत्तराखण्ड भाषा संस्थान द्वारा सम्मान (2011), अखिल भारतीय पत्रकारिता संगठन पानीपत द्वारा पं. युगलकिशोर शुकुल पत्रकारिता सम्मान (2012), (हल्द्वानी) स्व. भगवती देवी प्रजापति हास्य-रत्न सम्मान (2012) साहित्य सरिता, म. प्र. पत्रलेखक मंच बेतूल। भारतेंदु साहित्य सम्मान (2013) कोटा, साहित्य श्री सम्मान(2013), हल्दीघाटी, ‘काव्यगौरव’ सम्मान (2014) बरेली, आषा षैली के काव्य का अनुषीलन (लघुषोध द्वारा कु. मंजू षर्मा, षोध निदेषिका डाॅ. प्रभा पंत, मोतीराम-बाबूराम राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय हल्द्वानी )-2014, सम्पादक रत्न सम्मान उत्तराखण्ड बाल कल्याण साहित्य संस्थान, खटीमा-(2014), हिमाक्षरा सृजन अलंकरण, धर्मषाला, हिमाचल प्रदेष में, हिमाक्षरा राश्ट्रीय साहित्य परिशद द्वारा (2014), सुमन चतुर्वेदी सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन भोपाल द्वारा (2014), हिमाचल गौरव सम्मान, बेटियाँ बचाओ एवं बुषहर हलचल (रामपुर बुषहर -हिमाचल प्रदेष) द्वारा (2015)। उत्तराखण्ड सरकार द्वारा प्रदत्त ‘तीलू रौतेली’ पुरस्कार 2016। सम्प्रतिः-आरती प्रकाशन की गतिविधियों में संलग्न, प्रधान सम्पादक, हिन्दी पत्रिका शैल सूत्र (त्रै.) वर्तमान पताः-कार रोड, बिंदुखत्ता, पो. आॅ. लालकुआँ, जिला नैनीताल (उत्तराखण्ड) 262402 मो.9456717150, 07055336168 [email protected]