कुण्डली/छंद

कुण्डलिया

(१)

कान्हा  तेरा  नाम  सुन, मन  में  नाचे  मोर ।
तेरे  सुमिरन  मात्र  से, होय   सुहानी    भोर ।।
होय  सुहानी  भोर, बाद    सब  मंगल  होता ।
धरे  नही  जो  ध्यान, मूर्ख अपना   ही खोता ।
कहे  भक्त उत्कर्ष, ध्यान  धर जिसने  जाना ।
तेरा ही वह हुआ, त्यागकर सबकुछ कान्हा ।।

(२)

भूलो   मत  गुरुदेव  को, गुरू  गुणों  की   खान ।
दिवस आज गुरुदेव का, करो आप सब ध्यान ।।
करो  आप  सब  ध्यान, सफल तब ही हो पावें ।
गुरू   ज्ञान   के   दीप, बात   यह   वेद   बतावें ।
भूल   गुरू   नादान, अधर  में  क्यों  तुम झूलो ।
कहे   शिष्य  उत्कर्ष, गुरूजी   को   मत  भूलो ।।
 
(३)
 
बजरंगी    बलवीर  का, है  ये  मंगलवार ।
राम  नाम  के  साथ  जप, होवे बेड़ापार ।।
होवे  बेड़ा   पार, बात  यह   उर में धारो ।
संकट   होवे   दूर, आप  हनुमान  उचारो ।
कहे  भक्त उत्कर्ष, नाथ दुखिया  के संगी ।
शंकर  के  अवतार, वीर  बाला बजरंगी ।। 

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