मनहरण कवित / घनाक्षरी
चल रहे जिस पथ, मारग है नीति का वो,
आगे अभी बाकी सारा, आपका ये जीवन,
कोण घडी जाने आवे, संकट को लेके साथ,
मजबूत कर आज, अब अपना मन,
हार मत देख काम, लगा रह अविराम,
कर वो करम की, लागे अंग भोजन,
अपव्यय को रोक सदा, आमद भले हो ज्यादा,
चिंता से हो मुक्त फिर, पावे सुख ये तन
✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना