हमारा अवध मगध संसार
“हमारा अवध मगध संसार”
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यह कैसी है तेरी माया।
देकर सबको तूने काया।
करै हरवक्त तू रखवाली।
सब चलते हैं डाली डाली।
ऐसा तूने कर डाला है –
नहीं है अत्याचार !
हमारा,
अवध मगध संसार॥१॥
अलग अलग देता है काया।
फैलाई दुनिया में माया।
हर जगह सभी को भरमाया।
कैसा तूने खेल रचाया।
सबकी रचना ऐसे की है –
फूल बना संसार !
हमारा,
अवध मगध संसार॥२॥
राम लखन सिया यहाँ आये।
ॠषि मुनियों के मन हरषाए।।
हनुमत बने यहाँ बलवीरा।
नाम लेत भागे सब पीरा।।
दूर भगा करके अधर्मी को –
सुनता है जयकार !
यहाँ पे
अवध मगध संसार॥३॥
क्रमश:••••••
© रमेश कुमार सिंह ‘रुद्र’