विरोध
बस्ती के सभी घरों का अमूमन एक ही हाल था. मर्दों को शराब पीने की लत थी. इसके चलते लगभग रोज़ ही किसी ना किसी घर में झगड़े होते थे. मर्द जो कमाते उसका अधिकांश पीने में उड़ा देते थे. जो कुछ औरतें कमाती थीं उसे भी छीन लेते. बच्चों का पेट भरना कठिन था. बस्ती की औरतें इस बात से पकेशान थीं. लेकिन कोई कुछ कर नहीं पाती थी. लेकिन संतोषी को यह सब अब और बर्दाश्त नहीं था. उसने बस्ती की औरतों को एकत्र कर उनसे मिल कर इसके विरुद्ध आवाज़ उठाने को कहा.
“पर हम क्या कर सकते हैं.” एक औरत बोली.
“हम नहीं तो क्या कोई बाहर वाला करेगा. बस अपने मन को पक्का कर लो. अब जब वह हम पर हाथ उठाएं तो तुम भी चुपचाप ना सहो.”
संतोषी के प्रयास से बस्ती की औरतों ने एकजुट होकर विरोध करने का फैसला किया. जब भी किसी घर में झगड़ा होता सब एकजुट होकर उसका विरोध करती थीं.