गीत- ये मादक संस्पर्श तुम्हारा
ये मादक संस्पर्श तुम्हारा मुझको तो पागल कर देगा.
तुमको जल ही जल करने को ये मुझको बादल कर देगा.
ऐसी छुअन कि सिहरे है तन.
ऐसी छुअन कि पुलके है मन.
ऐसी छुअन हृदय की वीणा
बजने लगे स्वयं झन-झन-झन.
हाथों से ये हाथ पकड़ना भीतर तक हलचल कर देगा.
ये मादक संस्पर्श तुम्हारा मुझको तो पागल कर देगा.
ऐसी छुअन प्यास तक बहके.
ऐसी छुअन साँस तक महके.
ऐसी छुअन कहाँ ले जाये,
आनंदित मन-पंछी चहके.
अधरों से अधरों को पढ़ना मुझको नीलकमल कर देगा.
ये मादक संस्पर्श तुम्हारा मुझको तो पागल कर देगा.
ऐसी छुअन शिखर को छूना.
ऐसी छुअन भँवर को छूना.
ऐसी छुअन कि सागर-तल को
और कभी अंबर को छूना.
बाँहों से खजुराहो गढ़ना मुझको गीत-ग़ज़ल कर देगा.
ये मादक संस्पर्श तुम्हारा मुझको तो पागल कर देगा.
— डॉ.कमलेश द्विवेदी