फूल तितलियों वाला उपवन
बदला मौसम फिर बसंत का हुआ आगमन।
खिला खुशनुमा फूल-तितलियों वाला उपवन।
ऋतु रानी का रूप निरखकर प्रेम अगन में
हुआ पतंगों का भी जलने को आतुर मन।
पींगें भरने लगे बाग में भँवरे कलियाँ
लहराता लख हरित पीत वसुधा का दामन।
पल-पल झरते पात चतुर्दिश बिखरे-बिखरे
रस-सुगंध से सींच रहे हैं सारा आँगन।
टिमटिम करती देख जुगनुओं वाली रैना
खा जाता है मात चाँदनी का भी यौवन।
लगता है ज्यों उतरी भू पर एक अप्सरा
प्रीत-प्रीत बन जाता है यह मदमाता मन।
काश! गीतमय दिन बसंत के कभी न बीतें
और बीत जाए इनमें यह सारा जीवन।
– कल्पना रामानी