सामाजिक

पटरी से नीचे उतरी शिक्षा की रेल

पटरी से नीचे उतरी शिक्षा की रेल

शिक्षा में दिन प्रति दिन सुधार किये जा रहें है, विभागीय लोग भी पूरी तरह से कमर कसे हैं- कि शिक्षा के क्षेत्र का विस्तार बडे़ पैमानें पर हो रहा है। विद्यालय भोजनालय बनते जा रहंे है, बच्चांे को पहाड़ा पहाड़ दिखता है, अध्यापकों को समय पर विद्यालय में पहुंच पाना मुश्किल हो पा रहा है,
हम लोग ही नही बल्कि हमारे हमारे पूर्वज भी प्राथमिक शिक्षा को विशेष महत्व देते थें, क्योंकि उनका मानना था, कि नींव सही होगी तभी सही दीवार बनाना सम्भव है! परन्तु आज इस तरह की सांेच पर पानी फिरता नजर आ रहा है। आज के दौर मंे विद्यालय की तस्वीर एक भोजनालय मंे तब्दील हो गयी है, विद्यालय मेें बच्चे तब तक ही नजर आतें है जब तक उनको भोजन नही मिलता, भोजन मिलनें के बाद बच्चों की संख्या में भारी गिरावट नजर आनें लगती है ? और अध्यापक भी काफी प्रसन्न दिखाई देनंे लगतें है, बच्चों को खाना खिला दिया और कागजी कोरम पूरा कर लिया मानों विश्वकप जीत लिया हो। जो व्यवस्था छात्र के अभिभावक को करनी चाहिए वह व्यावस्था आज की सरकार छात्रांे के लिये कर रही है, यूनिफार्म देना, किताबें देना, स्कालर देना तरह तरह के प्रलोभन तो दिये जा रहें, परन्तु इन सभी प्रलोभनांे के बीच में शिक्षा का मूल उद्देश्य बौना नजर आनंे लगा है। प्राथमिक विद्यालयों में देखा गया है कि समाज के सभ्य एवं जागरूक लोगों के बच्चे प्राथमिक विद्यालयों मंे देखने को नही मिलते! इसका कारण क्या है ? शायद आज के दौर में सभी जानतें हैं। सर्वशिक्षा अभियान चलाकर अधिकारी/कर्मचारी शिक्षा के प्रति अलख जगातें हैं कि अपने बच्चों का नाम परिषदीय विद्यालय मंे लिखवाओं और वही कर्मचारी/अधिकारी अपने बच्चांे का नाम किसी प्राईवेट फर्म में लिखवातें है भला ऐसा क्यों ? क्योंकि वह सभी जानतें है कि सरकारी विद्यालयांे की शिक्षा गुणवत्ताहीन होती जा रही है, और सरकार का उद्देश्य है कि साक्षर कोई हो न पाये और निरक्षर कोई रह न जाय। विद्यालयों मंे तैनात अध्यापकों को इतने सरकारी काम काज का बोझ लाद दिया जाता है कि अध्यापक खुद अपने मूल उद्देश्य से भटका नजर आ रहा है।
आज के कुछ वर्ष पहले ही उत्तर प्रदेश के हर प्राथमिक विद्यालय मंे शिक्षण कार्य से पहले बच्चों से प्रार्थना कराई जाती थी, और बाजार में मिलने वाली कॉपियों के कबर पृष्ठ मंे पडाहा, प्रार्थना, जैसी लाईने सुशोभित होती थी पर आज के आधुनिक दौर मंे कॉपियों के कबर पर फिल्मी हीरो, हिरोइनों के चित्र नजर आते है, आज हम इतना आगे निकल चुके हैं कि ईश्वर की कोई जरूरत ही नही, विद्यालय को लोग पहले सरस्वती के मन्दिर का दर्जा दिया करते थे, आज के दौर में अन्नपूर्णा भवन बन कर रह गया है। दुनिया का हर इंशान रोटी, कपड़ा, मकान को लेकर पूरी जिन्दगी भर हाथ पैर मारता फिरता था परन्तु इस प्रकार की चिन्ता से आज मुक्त हो गया है, कारण है – बच्चें को विद्यालय मेें खाना कपड़़ा मिल ही जाता है, और आज की सरकार भी इंदिरा आवास, लोहिया आवास, महामाया अवास जैसे सुविधांऐं प्रदान करनें के लिये संकल्पवद्ध है, सरकार भी मनरेगा के अन्तर्गत सभी लोगों को रोजगार देकर भारत की तस्वीर बदलना चाहती है, और सरकारी कर्मचारी इन्ही योजनाओं के बीच अपनी तकदीर भी बदलना चाहतें है, मजदूर को मजदूरी मिले या न मिले पर घोटाला जरूर होगा। कभी किसी ने सोंचा है ? कि हाथ में फावडा, और झाबा देकर भारत को विकसित किया जा सकता है ?

आइये प्राथमिक विद्यालय की कार्यप्रणाली पर एक बार नजर डाल कर देखते हैं और विचार करतें है कि पढ़ाई कब होती है – 7 से 12 बजे तक के विद्यालय में देखा गया है कि बच्चे तो समय से आ जातें हैं पर स्टाफ 8 से 9 बजे तक उपस्थित होता है, उसके बाद फिर आपस में थोडी देर कुछ गपशप होती है, उसी बीच में रसोईयां आ जाती है, गुरू जी आज कितने बच्चें है गुरू जी अपने सहायक से पूछकर बच्चों की संख्या बता देतें है, फिर मीनू के हिसाब से खाना बनानें की प्रक्रिया चालू होती है, बाजार सेे सब्जी आई, विद्यालय मे मौजूद छात्रांे की नजर रसोईयां को ताक रही है, कहीं – कहीं पर यह भी देखा गया है कि विद्यालय की छात्राएं भी खाना बनवानंे में हाथ बंटा रही है, लगभग 10 से 11 बजे तक खाना बनकर तैयार गुरू जी ने भी सभी बच्चांे की कागजी कार्यवाही पूर्ण की, प्रधानाध्यापक कक्ष के अन्दर जातें है और बच्चों से कहतें है शोर बन्द करों – कल जो काम दिया था वह पूरा हो गया। छात्रों की आवाजा आई – जी गुरूजी, गुरूजी घूमकर सहायक के पास आये और बोले देखो सबको खाना खिलाकर विद्यालय बन्द कर देना हम बैंक जा रहें। अब आप बताइये खाना खाने केे बाद समय कहां बचा, कुछ बच्चे तो खाना लेकर खिसक लिये बाद में कुछ बच्चे खाना खाने के बाद अब विद्यालय बचे सहायक शिक्षामित्र इनको हमेंशा विद्यालय बन्द करनें को जल्दी ही रहती है।

10 से 4 बजे तक के विद्यालय मंे सभी अध्यापक लगभग 11 से 12 बजे के बीच ही तसरीफ लातें है। सरकार को पता नही कहां से पता चल गया कि बच्चों के स्कालर मंे गुरूजी काफी उलट फेर कर रहें है ? यही नही ड्रेस में कमींशन खोरी चल रही है, इस लिये सरकार ने स्कालर और मिलने वाली डेªेस का सारा सिस्टम ही बदल दिया, इस बदले सिस्टम से गुरूजनों का नेटवर्क बिजी होनें लगा। विद्यालय की पढ़ाई शिक्षामित्र के हवाले हो गयी, गुरूजी अब दिन भर बैंक के चक्कर काटने लगे सभी बच्चांे के खाते खुलवानंे के लिये, बैंक में बैठे मैनेजर साहब बोले एक दिन में दस बच्चों के ही खाते खोल सकूंगा, इससे ज्यादा नही हो पायेगा, खाते खुलवानें के लिये गुरूजी सभी बच्चों का जन्मतिथि प्रमाण पत्र बनानें में रातो दिन लगे रहे रहतें है, इस संकट से कितनी जल्दी मुक्ति मिले साथ-साथ हनुमान चालीसा का पाठ भी करते रहतंे है, लगभग एक महीनें में सभी बच्चों के खाते बैंक में खुल गये। हर विद्यालय में अब नया आदेश फिर पेश किया गया, जो बच्चे विद्यालय नही आतें है उनके घर जाओं ! और विद्यालय न आनें का कारण पता लगाओं, अगर छात्र फिर भी विद्यालय नही आता है तो उसका नाम विद्यालय के अभिलेखों से काट दिया जाये। इस आदेश से गुरूजी की उपरी कमाई पर ग्रहण लग गया, जिनके खाते खुले है स्कालर उन्ही को मिलेगा वो भी सीधे खाते में जायेगी, हाथ में कुछ भी नही आयेगा। अभी इन सभी कामों से थोडी राहत मिली ही थी कि डेªस का प्रकरण छिड़ गया, दो सौ रूपये में सरकर छात्रों को डेªस दे रही है, साथ में टाई बेल्ट, पूर्व माध्यमिक विद्यालय की छात्रों को दुपट्टा भी मिल रहा है, अब इसमें होता क्या है एक दर्जी आता है जो एक- एक करके सभी छात्र/छात्राओं की नाप लेता है गुरूजी बैठकर सभी बच्चों को एक एक कर के बुलातें है, इस वक्त पढाई का हाल ही न पूंछो, एक विद्यालय में दर्जी लगभग चार से पांच दिनांे तक आता है, एक ही दर्जी के पास तीन चार किस्म के कुटेशन रहतें है जिसमें तरह – तहर के मूल्य छापे जाते है, पहले तो गुरूजी कपड़े की गुणवत्ता को देखतें है बाद में पैसा कम करातें है, उसके बाद किसी तरह बच्चों को ड्रेस पहना दी जाती है, एक सप्ताह बाद किसी छात्र की बांहंे खुली है तो किसी के पैंट की सिलाई रहम की भीख मांग रही है। कहीं पर देखा गया है कि दो डेªसांे में एक ही डेªेस दी जाती है, गुरूजी जिस दर्जी से डेªस लेते हैं बाद में दर्जी उनको उचित उपहार देता है।
इस वर्ष से शिक्षा में एक नया मोड़ दिखाई देने लगा है, उत्तर प्रदेश के सभी पूर्व माध्यमिक विद्यालयांे मे शिक्षा का चहुमुखी विकास करनंे के लिये अनुदेशकों को रखा गया है, पढाई बेहतर करनें के लिये पहले शिक्षामित्रों को विद्यालय में रखा गया था इनके रखने के कई वर्ष बाद तक शायद सरकार को सही परिणाम नही मिल पाया, और यह इण्टर पास शिक्षामित्र सरकार के दुश्मन बन गये अब सारे शिक्षामित्र गले की फांस नजर आनें लगे विधान सभा के सामने प्रर्दशन करनें लगे कि अब मुझको सहायक अध्यापक बना दिया जाये, शिक्षामित्रों का जिला स्तर पर एक सरदार बना है वह आये दिन इनकी समस्याओं को लेकर इनकी आवाज को बुलन्द करता है। इसी तर्ज पर विद्यालयों में अनुदेशकों को रखा गया है ये अनुदेशक विषयावार रखे गयंे है कम्प्यूटर, कला, शारीरिक शिक्षा आदि विषयों में इनकी नियुक्ति की गयी है मजे की तो यह है कि विद्यालय में कम्प्यूटर के गुरूजी तो है पर विद्यालय में कम्प्यूटर नही है, कही कहीं पर कम्प्यूटर गुरूजी दोनों पर पर बिजली नही है, अब बताओं को गुरूजी क्या करें, मजबूरन उनको बालभारती पढ़ानी पड़ रही है समय बितानें के लिये। शारीरिक शिक्षा के भी गुरूजी है विद्यालय में मौजूद है, पर विद्यालय में व्यायाम सम्बन्धी कोई उपकरण नही है, सुबह आने में देर हो जाती है इस लिये पीटी करानें का कोई प्रश्न ही नही उठता। रही बात कला की एक दिन श्याम पट्ट पर अनार बना दिया जाता है कई दिनों तक बना रहता है शायद पकनें केे लियेे छोंड दिया जाता है, जब नही पकता है तो उसही जगह पर बैट बाल बना दिया जाता है, जो बच्चे कई दिनों तक खेलतंे है। विद्यालय में मौजूद पूराने अध्यापकों की चॉदी हो गयी, हर कक्ष में एक – एक अनुदेशक बैठा दिये खुद कार्यालय में बैठ गये, एमडीएम, डेªस, आदि प्रकार की कार्यवाही पूर्ण किया करतें है। यह अक्सर  देखा गया है कि किसी भी विद्यालय में पूरा स्टाफ नही मिला कोई न कोई छुट्टी पर जरूर रहता है।
सरकार की इतनी व्यावस्था के बीच हर जिले मे कई दर्जन विद्यालय ऐसे पाये जातें है जो एकल है, पूरे विद्यालय में सिर्फ एक ही शिक्षक है, शिक्षक की कमीं को दूर करनें के लिये सरकार मूंगफली के दाने डाल रही है पर बादाम नही ला पा रही। देश मंें नौनिहालों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जाता है, लचर कार्यप्रणाली के चलते शिक्षा अव्यावस्थाओं की भेेंट चढ़ रही है, सफलता के नाम पर सरकार छात्रों से लोहे के चने चबवाती है, जो प्राथमिक विद्यालयों में पढ कर निकले छात्रों के लिये बहुत मुश्किल हो जाता है। प्रशासन शिक्षा को सुधारनें के लिये शिक्षकांे को सुधार दे, और विद्यालय पूरी तहर से शिक्षा पर निर्भर कर दे बाकी के प्रलोभनों को दरकिनार कर देे तो अभी समय है, शिक्षा की रेल अपनी ही पटरी पर फरार्टे भर लेगी। नही तो आगे सब राम भरोसे।
राजकुमार तिवारी (राज) बाराबंकी उ0 प्र0

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782