कविता

मां का आंचल बनाम बीवी का पल्लू (कविता)

जिसने सीने से लगाकर पिलाया दुध।
तेरे बीमार होने पर जो जगी कई कई रातें।।
आज वो वृद्धा बुरी है कलह की जड़ है।
कांटो सी चुभती है उसकी नसीहत वाली बातें।।

नौ माह गर्भ मे रखकर वो हंसते हंसते सहती थी सभी पीड़ा।
खुद कष्टों की कालिमा से बनकर कोयला तुझे संवारा निखारा तराश कर बनाया हीरा।।

खा कर आधापेट तुझे दिया भरपेट निवाला।
आज भी वो सूखी रोटी पानी से बुझाती है जठराग्नि की ज्वाला।।

क्योंकि आज भी वो बुढी है एक बदनसीब माँ।तुझे तो मिल गई बीवी पर मां ने खो दिया अपना बेटा।।

तेरी जिद पुरी करने को जो हमेशा तैयार थी।आज उसकी जरूरत सुनने को तुझे फूर्सत का इंतजार है।
जिसकी ममता लहू संस्कार की बुनियाद पर तेरी काया तेरा एश्वर्य तेरा संसार है।।
आज तेरे”अपने परिवार” मे वही बुढी माँ अस्तित्वहीन लाचार है।।

जाहिर है तेरे पारिवारिक दर्पण मे तेरे बीवी बच्चों की सूरत है।
क्योंकि आज माँ के आंचल से ज्यादा तुझे बीवी के पल्लू की जरूरत है।।

@विनोद कुमार विक्की

विनोद कुमार विक्की

शिक्षा:-एमएससी(बी.एड.) स्वतंत्र पत्रकार सह व्यंग्यकार, महेशखूंट बाजार, खगडिया (बिहार) 851213