जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई
मनीषा का बचपन खेल-कूद में कम और घर का काम करने में ज़्यादा बीता. घर में सदस्य ज़्यादा- कमाने वाले कम, खाने वाले ज़्यादा- खाना कम, ऐसे ही समय बीतता गया. किसी तरह पढ़ने का मौका मिला, उसका लाभ उठाया और मैट्रिक, बी.ए, एम.ए कर ली. अध्यापिका की नौकरी की, साथ में ट्यूशंस भी. विवाह हुआ, बच्चे हुए, नौकरी और घर-परिवार को समर्पित ज़िंदगी के साथ कैंसर की भयंकर पीड़ा. मनीषा तनिक नहीं घबराई. उसके जीवन का प्रेरणा मंत्र था-
”ज़िंदगी चलती जाएगी,
यह तीन शब्द नहीं,
बल्कि जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई है.”
जीवन की इसी सबसे बड़ी सच्चाई के आगे उसके महा भयंकर रोग कैंसर को हार माननी पड़ी थी.