तिरंगी झंडियां
26 जनवरी वाले दिन सुबह-सुबह अनूप के घर के बाहर अनूप, मनोज और टीनू उदास बैठे थे. उनकी उदासी देखने के लिए किसी के पास समय भी नहीं था. सभी अपनी-अपनी तैयारियों को लेकर व्यस्त थे. कोई स्कूल के फंक्शन के लिए तैयारी कर रहा था, कोई कॉलोनी के फंक्शन के लिए. कल्लू हलवाई नुक्ती के लड्डू बनाने की तैयारी में जुटा था. कल्लू हलवाई का बेटा सुमित यंग एसोसिएशन का अध्यक्ष था. वह भी फंक्शन की तैयारी के लिए जा रहा था. तीनों मित्रों की उदासी उसकी पैनी नज़रों से न छिप सकी. पूछने पर वे दुखी मन से बोले- ”हमारे पास तिरंगा झंडा तो क्या तिरंगी झंडियां भी नहीं है, हम क्या 26 जनवरी मनाएंगे, सुमित भैय्या!” सुमित ने कहा-
”बस इतनी-सी बात! आप लोग गणतंत्र दिवस मनाना चाहते हैं और मुझे आप जैसे उत्साही बच्चों की ज़रूरत है. मेरे साथ आओ, मैं आपको झंडियां देता हूं, आप तीनों सभी बच्चों को बांटकर आओ और सबको तैयार होकर दस बजे सेंट्रल पॉर्क में आने के लिए कहते जाना, और हां सबको यह भी बताते जाना कि इस दिन हमारे आज़ाद भारत का नया संविधान लागू हुआ था, आज उसी संविधान का सम्मान करने की पावन याद को ताज़ा करने का दिन है.” बच्चे उत्साह से नाचने लग गए और सुमित भैय्या के साथ चल पड़े. वे सबको तिरंगी झंडियां और ज्ञान बांटने को बेताब थे.