लघुकथा

सीख

शाम को टहलते हुए आसानी होती है. दूध व सब्ज़ी ले कर लौटना. यूँ तो अक्सर दूध बूथ से ही लेती हूँ, लेकिन कभी कभी किराने की दुकान से भी दूध ले लेती हूँ. सब्ज़ी की दुकान और किराने की दुकान एक दूसरे के आस-पास है. सब्ज़ी लेकर किराने के दुकान से ही दूध लेना आसान था. किराने की दुकान गयी तो दुकान में मालिक युवा था. चालीस रुपया दिया, दूध था ३९ का, युवा दूध दे मोबाइल में व्यस्त हो गया। मेरे टोकने पर वो बुदबुदाता (चिल्लर चाहिए) टॉफी का डिब्बा खोलने लगा. मैंने मना किया कि नहीं मुझे टॉफी नहीं चाहिए, बाद में हिसाब कर लेंगे, तो बेहद उखड़े आवाज में बोला कि मैं हमेशा नहीं बैठता दुकान में, याद कौन रखेगा, चेंज लेकर आना चाहिए, मेरे पास एक रुपया नहीं है, दो का सिक्का है. युवा वर्ग को तैश गलत बात पर ही ज्यादा आता है. सब्जी वाले से मैंने एक का सिक्का लिया, किराने के दुकान से दो का सिक्का बदला, सब्जी वाले को दो का सिक्का देकर चलती बनी.

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ