कहानी : साहिबा
साहिबा जैसा कि नाम से ही लग रहा है सबके दिल में रहने वाली हमेशा हसने वाली और दूसरो के साथ खुद को खुश रखने वाली । जो भी चाहती उसे मिल जाता परिवार में भी सबसे छोटी होने के वजह खूब चलती ।लेकिन धीरे धीरे सब बदलने लगा और खुशियां रुठने लगीं । पहले जो परिवार उसकी हर छोटी बड़ी ख्वाहिश पूरी करने के लिए लड़ता था । अब वही परिवार उसके घर में रहने को लेकर लड़ने लगा । लेकिन इस सबके बीच कोई ऐसा था जो सिर्फ साहिबा के लिए सोचता था उसे प्यार करता था । उसके हर परेशानी हर गम में उसके साथ सहारा बनकर खड़ा होता था ।और वो उसकी झलक पाकर अपनी सभी परेशानियां भूल जाती थी ।और सब यूँही चलने लगा और समय बीतता गया । और अब वो राजेश जो सिर्फ साहिबा के लिए सोचता था साहिबा के साथ आगे बढ़ना चाहता था । लेकिन किस्मत यहाँ भी उससे रूठी थी एक दिन अचानक साहिबा बेहोश हुयी और डॉ ने बताया की साहिबा कैंसर की मरीज है जो ठीक नही हो सकता । और साहिबा ने राजेश की और बढ़ते हुए अपने कदम रोक लिये। और पहले जो प्यार और विश्वास राजेश साहिबा पर करता था धीरे धीरे वो साहिबा के चिढचिढेपन के कारण टूटने लगा था और रह रह कर वो यही सोचता की क्या ये वही साहिबा है जिसे मै प्यार करता हूँ कहीँ खोती जा रही है वो। जबकि वो साहिबा की हालत से अनजान था ।और एक दिन उसने साहिबा को आकर बताया की उसकी शादी होने वाली है । साहिबा के चेहरे पर अजीब सी चमक और ख़ुशी थी जिसे राजेश समझ नही पाया लेकिन उससे पूँछ भी न सका । दोनों अगले दिन अपनी उसी पुरानी जगह पड़ी बेंच पर बैठकर घंटो बातें करते रहे और एक वादा किया दोनों ने एक दूसरे से की जब कभी भी दोनों को एक दूसरे की जरूरत होगी तो हम मिलेंगें । राजेश ने शादी की ओर खाने कमाने में साहिबा को कब भूल गया पता ही नहीँ चला ।और आज इस बात को पुरे 7 साल हो गए ।राजेश के परिवार में वो उसकी बीवी आरती और दो बच्चे शिखा और शिखर हैं ।
लेकिन पता नही क्यों आज राजेश को अजीब सी घबराहट क्यों हो रही है वो समझ ही नही पाया ।सन्डे का दिन होने की वजह से आरती और बच्चे शौपिंग की जिद करने लगे । फिर क्या राजेश परिवार के साथ पास ही खुले एक माल में गया और सब खरीददारी में लग गए ।जैसे ही उसकी नजर वहाँ लगे एक बोर्ड पर पड़ी तारीख पर गयी और वो पुरानी यादों में खो गया ।आज ही के दिन साहिबा का बर्थडे वो दोनों मिलकर साथ मनाते थे । इतने में आरती एक सूंदर सा काला ड्रेस पहनकर आई और राजेश को दिखाते हुए बोली मै कैसी लग रही हूँ और वो अपनी खुमारी से अचानक बाहर निकल आया। लेकिन उसे आरती में भी साहिबा दिखने लगी और मन की बेचैनी और बढ़ गयी। उसने निश्चय किया की वो साहिबा से मिलने उसके शहर जायेगा ।अगले दिन ऑफिस से छुट्टी लेकर ट्रेन पकड़ी और निकल पड़ा अपनी साहिबा से मिलने ।पुरे रस्ते यही सोचता रहा की साहिबा जरूर बहुत ज्यादा खुश होगी अपनी जिंदगी में की उसे एक बार मेरी याद भी नही आयी ।पलक झपकते ही उसने 18 घण्टे का सफ़र तय कर लिया साहिबा की यादो में ।स्टेशन पर उतरते ही उसकी आँखे ये जानते हुए भी यहाँ साहिबा नही होगी उसे ढूंढ़ने लगीं। और वो जल्दी जल्दी अपने घर पंहुचा और फिर उसने अपने सभी दोस्तों से साहिबा के बारे में पता करने की कोशिश की लेकिन कोई नही बता सका उसके बारे में ।उसने साहिबा को फोन किया लेकिन वहाँ सिर्फ इतना सुनाई दिया की आप जिस नॅ. पर संपर्क करना चाहते हैं वो नॅ. स्थायी रूप से बन्द है । अब तो राजेश के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थी ।वह दूसरे दिन सुबह साहिबा के घर जाने के लिए निकला ।और वहाँ पहुचने पर ये सोचते हुए की इतने दिन बाद साहिबा कैसी दिखती होगी ? मुझे माफ़ किया होगा या नही ? मुझे देखकर कैसे रियेक्ट करेगी ? मुझे पहचानेगी ? डोर बेल बजायी। अंदर से एक बूढी औरत बाहर आयी और उसने दरवाजा खोला। उन्हें देखकर राजेश तुरंत समझ गया कि ये साहिबा की माँ है उसने उनके पैर छुए और उन्हें बताने लगा की वो साहिबा का बहुत अच्छा दोस्त है राजेश जो 7 साल बाद लौटकर आया है ।राजेश का सुनकर वो बूढी औरत बोली मै जानती थी तुम साहिबा से मिलने जरूर आओगे ।ये कहते हुए उसने राजेश को अंदर बुलाया।और राजेश को सब कुछ जाना पहचाना सा ही लगा बिलकुल वैसा जैसा उसने साहिबा से सुना था।वो बूढी औरत बगैर कुछ बोले भीगी आंखों से उसे निहारे जा रही थी ।यह उसे थोडा असहज बना रहा था ।राजेश ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा साहिबा कहाँ है अपनी ससुराल है क्या वो खुश तो है ऐसे बहुत से सवाल वो एक साँस में उनसे पूँछ गया। यह सुनते ही जिन आँसुओ को वो बहुत देर से रोके बैठी थी छलकने लग गयीं रोते हुए उन्होंने बताया की बेटा तम्हारे जाने के कुछ दिन बाद ही साहिबा हम सबको छोड़कर चली गयी लेकिन वो कहती थी की तुम उससे मिलने जरूर आओगे । राजेश को ऐसा लगा जैसे साहिबा ने उसके साथ धोखा किया ।और अपनी खुशियां उसे देकर चली गयी ।भरी कदमो से जाते हुए जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसे साहिबा दरवाजे पर मुस्कुराते हुए हाथ हिलाती दिखी वो चाहता था की खूब लड़े उससे और कहे जब तम्हे मेरी सबसे ज्यादा जरूरत थी तब तुमने मुझे खुद से दूर क्यों भेजा ? क्यों किया ये धोखा मेरे साथ लेकिन साहिबा अपने साथ सब सवालोँ के जबाब भी ले गयी ।स्टेशन पर पहुचकर उसे लगा जैसे साहिबा उसे छोड़ने आयी है उसी नयी दुनिया में जो उसने साहिबा के लिए बनाई थी । लेकिन इस बार वो साहिबा को बस यही कह सका लौट आओ। साहिबा लौट आओ ।आ जाओ ।और साहिबा ने फिर एक न सुनी उसकी और लौट गयी उससे दूर ।
राजेश जब अपने घर पहुँचा तो उसे ये बात बार बार कचोटने लगी की वो अपनी खुशियो में इंतना खोया की उसे 7 साल में साहिबा की याद आयी ।जबकि वो हर पल उसका नाम लेते हुए तड़पते तड़पते चली गयी सिर्फ उसे आखिर वक़्त एक नजर देखने की चाह लीये ।
वो समझ ही नही पा रहा था उसके लिए खुद को दोष दे ,साहिबा को या उस समय जो परिस्थितियाँ थी उन्हें ।साहिबा का असर अब राजेश पर साफ दिखने लगा था । जिससे आरती को अब जलन होने लगी थी की साहिबा ऐसा कौनसा राज है जिसने सिर्फ एक दिन में अचानक आकर राजेश को इतना बदल दिया । राजेश की जुबान पर हमेशा साहिबा होती आरती सुलग उठती उस समय जब वो साहिबा की तारीफ़ें करता , साहिबा होती तो ऐसे करती ये कहती ,वो कहती बस मौका मिलते ही साहिबा लौट आती या राजेश जबरदस्ती उसे अपने पास लौटने को मजबूर करता । एक दिन जिस कॉलेज में राजेश लेक्चरर था उसमें उसने लड़की को देखा जिसके चेहरे पर भी वही चमक थी जो साहिबा के चेहरे पर थी आखरी बार उनके मिलने पर वो न तब कुछ समझ पाया था और न अब समझ पा रहा था। जब उसने उस लड़की के बारे में पता करना चाहा तो पता चला ।उस लड़की का नाम जूही है और वो उसी के कॉलेज की छात्रा है । जो साहिबा की तरह ही लाइलाज बीमारी से लड़ रही है वो भी नही चाहती है कि उसका प्यार शिवम ये जाने कि वो ज्यादा समय उसके साथ नही है ।और उसके लिए अपनी आने वाली जिंदगी को दांव पर लगाये ।सब वही था जो पहले हो चुका था लेकिन इस बार राजेश साहिबा को अपने साथ किसी सवाल का जबाब नही ले जाने देना चाहता था। इस बार वो वही चमक जो साहिबा के चेहरे पर थी खुद में महसूस करना चाहता था।उसने जूही से दूर जाते शिवम से मिलेन का निश्चय किया ।शिवम के घर जाकर उसे समझाया की जिस तरह मै ये गलती कर चुका हूँ ।तुम इसे दोहराओ मत जूही को जब तुम्हारी जरूरत है उसे तब अकेला सिसकने के लिए छोड़कर उसे एक और साहिबा मत बनाओ शिवम् भी जूही के बदले रूप को अब समझ चुका था ।राजेश ने अगले दिन जूही और शिवम को अपने पास बुलाकर अपनी साहिबा के बारे में बताया दोनों ही समझ चुके थे कि प्यार क्या है। दोनों को एक दूसरे का हाथ पकड़कर साथ जाते देखकर राजेश ने खुद को साहिबा के साथ पार्क की उसी पुरानी बेंच पर बैठा पाया जहाँ दोनोँ हमेशा मिला करते थे ।
अब वही चमक जो साहिबा के चेहरे पर थी राजेश के चेहरे पर भी साफ दिखायी दे रही है । अपनी साहिबा को उसने इस बार बचा लिया जाने नही दिया।आज कितने सालों बाद राजेश में वही अल्हड़पन दिख रहा है जो तब हुआ करता था ।
अचानक किसीने राजेश को पीछे से आकर आवाज दी लेकिन इस बार उसने पीछे मुड़कर नही देखा क्योंकि साहिबा लौट आयी थी ।तब आरती ने आकर राजेश को जगाने की कोशिश की लेकिन राजेश और साहिबा इस बार कभी दूर न होने के लिए मिले थे ।राजेश के हाथ में साहिबा की तस्वीर और एक चिट्ठी थी जिसमे लिखा था मुझे मेरी साहिबा के पास ही दफनाया जाये क्योकि साहिबा कहती थी मै कितनी ही दूर चली जाऊँ लेकिन तुम हमेशा मेरे पास रहोगे ।शरीर की दूरियां अब राजेश खत्म कर चूका था ।अब अब बारी आत्माओं के मिलान की थी। राजेश की आखरी इच्छा के अनुसार धर्म की सारी बंदिशे तोड़ते हुए उसे साहिबा के साथ वाली कब्र में दफनाया गया । इस तरह साधारण से साहिबा और राजेश असाधारण बनकर अपने प्यार को निभा पाये ।और अपने पीछे कोई सवाल छोड़कर नही गए वो दोनों खुद हर इंसान के मन में उठने वाले सवाल का जबाब बन गए ।
— अनुपमा दीक्षित मयंक