बालकविता “लगता एक तपस्वी जैसा”
बगुला भगत बना है कैसा?
लगता एक तपस्वी जैसा।।
अपनी धुन में अड़ा हुआ है।
एक टाँग पर खड़ा हुआ है।।
धवल दूध सा उजला तन है।
जिसमें बसता काला मन है।।
मीनों के कुल का घाती है।
नेता जी का यह नाती है।।
बैठा यह तालाब किनारे।
छिपी मछलियाँ डर के मारे।।
पंखों को यह नोच रहा है।
आँख मूँद कर सोच रहा है।।
मछली अगर नजर आ जाये।
मार झपट्टा यह खा जाये।।
इसे देख धोखा मत खाना।
यह ढोंगी है जाना-माना।।
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)