मुहँदेखाई-
नई बहू के गृहप्रवेश करते ही घर में कानाफूसी शुरू हो गई|
“बडे पन्डित बनते है, इन्हें यह भी नहीं पता की राहुकाल में नई बहू को गृहप्रवेश नहीं कराते हैं|”
“हाँ री, सुना है बड़ा अशुभ होता है|”
“…भगवान ही मालिक है अब।”
इन्हीं कानाफूसियों के बीच सारे रीतिरिवाज बीत गए …| दादी भी मुहँ फुलाये थी।
बहू ने पैर छूकर आशीर्वाद माँगा ही था कि बरस पड़ी ..”राहुकाल में प्रवेश हुआ है छोरी, भगवान करें सब अच्छा हो।”
बहू हँसते हुए बोली- “यह राहुकाल क्या होता है दादी, आप बस हँसते रहा करिए ये हँसी का काल है।” कहके जोर से खिलखिला पड़ी |
टीवी देखती हुई दादी उसकी निरछल हँसी सुनकर मुहँ बिचका दीं | ‘आजकल की बहुए’ कहते हुए टीवी पर समाचार सुनने लगी |
अचानक पाकिस्तान का नाम सुनते ही उनके कान चौकन्ने हो गए | समाचार वाचक बोले जा रहा था | वह आँखे फाड़े हाथ को कान पर लगाकर बैठ गयी मूर्ति की तरह| टीवी की खबर कानों से टकराई कि पन्द्रह साल से जेल में बंद रामकृपाल के साथ दो और बुजुर्ग बंदियों को छोड़ा जा रहा है।
पलंग से फुर्ती से उतरकर दादी अलमारी में कुछ खोजने लगी| “बहू-बेटा, सुनते हो, अरे जल्दी आओ ! तेरे पिता जी जिन्दाsss हैं ..।”
पति द्वारा दिया गया नौलखा हार हाथो में लिए बोलीं -“तेरी बहूरिया कहाँ है, बुला उसे, उसकी ‘मुहँदेखाई’ दे दूँ । अरी उसका प्रवेश बड़ा शुभ है…!!”
सविता मिश्रा