ग़ज़ल
अदब से यूँ निभाना चल रहा है
मिज़ाज अब शायराना चल रहा है
समझता कौन है अब दिल की बातें
फ़क़त सुनना सुनाना चल रहा है
तुम्हारे दर्द की पूँजी लगाकर
ग़मों का कारख़ाना चल रहा है
मेहरबां हो चला है अब मुकद्दर
बिना माँगे ही पाना चल रहा है
अगरचे है मुख़ालिफ़ शब ये मेरे
सहर से दोस्ताना चल रहा है
उधर भी चल रही हैं दावतें, और
इधर भी आबोदाना चल रहा है
यकीं की पीठ थी जिनके सहारे
वो दीवारें गिराना चल रहा है
किसे परवाह है अब शायरी की
तुम्हें लिखना मिटाना चल रहा है
नहीं कुछ ख़ास है इनकी ज़रूरत
मगर साँसों का आना चल रहा है
तेरी माँ के किए सदक़े से ‘पूनम’
दुआ का शामियाना चल रहा है