चुनावी दोहे
पैसे लेकर बेचते, जो भी अपना वोट,
जरा स्वार्थ में दे रहे, लोकतंत्र को चोट |
अपराधी को वोट दे, देते उनका साथ
वे भी दुश्मन देश के,दोष मढाते माथ |
ढूँढें से मिलते नहीं, चारित्रिक प्रतिमान,
अपराधो से घट रहा, नेता का सम्मान |
चारित्रिक छवि ढूंढकर, देना अपना वोट,
सजग रहे तो घट सकें, लोकतंत्र से खोट |
नैतिकता की अब यहाँ, बची न कोई छाँव,
भ्रष्टाचारी जीतकर, फ़ैल रहें हर गाँव |
— लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला