लडेंगे..लडेंगे…हम लडेंगे
जो कुछ है इस प्रकृति में
वह यहीं के है
हम सभी हैं उसका अधिकारी
छीननेवालों से डरना क्यों
हम लडेंगे…लडेंगे..हम लडेंगे
आखरी साँस तक हम लडेंगे
नहीं, हम नहीं, उनके चप्पल के
नीचे की मिट्टी,दबकर रहने का
शोषण, अत्याचार, का शिकार होने का
मैला ढोने की अधम शक्ति
नहीं, हम नहीं
वंचित, पीड़ित होकर
सांप्रदायिकता के जाल में अश्रुजल पीते
दाँत गिडगिडाने का,
नहीं, हम नहीं
भाग्यवाद में फँसने का,
हम हैं घुमड़-घुमड़ कर
एक साथ मिल, मुट्ठी बाँधनेवाले
हम हैं बादल घने,सिर के ऊपर
गरजने का है, अब चलो
चलो, आगे चलो, चलते जाओ
कदम-कदम आगे बढ़ते जाओ
जीव-जीव में
उमड़नेवाली अद्भुत शक्ति है हम
भरलो, भरलो, भरलो मन में
छीननेवालों से डरना क्यों
लड़ेंगे..लड़ेंगे..हम लड़ेंगे
आखरी साँस तक हम लड़ेंगे ।