कविता

लडेंगे..लडेंगे…हम लडेंगे

जो कुछ है इस प्रकृति में
वह यहीं के है
हम सभी हैं उसका अधिकारी
छीननेवालों से डरना क्यों
हम लडेंगे…लडेंगे..हम लडेंगे
आखरी साँस तक हम लडेंगे
नहीं, हम नहीं, उनके चप्पल के
नीचे की मिट्टी,दबकर रहने का
शोषण, अत्याचार, का शिकार होने का
मैला ढोने की अधम शक्ति
नहीं, हम नहीं
वंचित, पीड़ित होकर
सांप्रदायिकता के जाल में अश्रुजल पीते
दाँत गिडगिडाने का,
नहीं, हम नहीं
भाग्यवाद में फँसने का,
हम हैं घुमड़-घुमड़ कर
एक साथ मिल, मुट्ठी बाँधनेवाले
हम हैं बादल घने,सिर के ऊपर
गरजने का है, अब चलो
चलो, आगे चलो, चलते जाओ
कदम-कदम आगे बढ़ते जाओ
जीव-जीव में
उमड़नेवाली अद्भुत शक्ति है हम
भरलो, भरलो, भरलो मन में
छीननेवालों से डरना क्यों
लड़ेंगे..लड़ेंगे..हम लड़ेंगे
आखरी साँस तक हम लड़ेंगे ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।