कश्ती
आँखों में मेरी सावन पा, मनमीत लुभा कर रूँठ गया।
जीवन में प्यासी कश्ती को, हर रोज़ रिझा कर लूट गया।
माँझी जिसको समझा मैंने, निकला काग़ज़ की कश्ती वो।
पाकर लहरों के आलिंगन, खुद भूला अपनी हस्ती वो।
अरमानों की सेज सजाये, मैं राह सनम की तकती हूँ।
पा जाए कश्ती साहिल को, हर रोज़ दुआ ये करती हूँ।
— डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”