दहलीज
ये उम्र की दहलीज भी
बड़ी जालिम होती है
धड़कनों को जवाँ और
जिस्म को खोखली
करती जाती है
मचल के रह जाता मन
उत्तेजनाओं के जोश में
और बीत जाते खूबसूरत पल
सब्र की खामोशियों में
गुमसुम दिल ख़फा ख़फा सा है
मान लूँ अगर बात इसकी तो
जमाने में होनी रुसवाई है
निगाहें बदल सकती है लोगों की
क्योंकि बढ़ती उम्र में
इश्क़ फरमाने की मनाही है
कैसे समझाए ये बात जमाने को
इश्क़ करने की कोई उम्र नहीं
ये तो हर उम्र की दर्दे दवा होती है।