“बेच रहा मैं भगवानों को”
सुन्दर-सुन्दर और सजीले!
आकर्षक और रंग-रँगीले!!
शिवशंकर और साँईबाबा!
यहाँ विराजे काशी-काबा!!
कृष्ण-कन्हैया अलबेला है!
जीवन दर्शन का मेला है!!
जग-जननी माँ पार्वती हैं!
धवल वस्त्र में सरस्वती हैं!!
आदि-देव की छटा निराली!
इनकी सूँड बहुत मतवाली!!
जो जी चाहे वो ले जाओ!
सिंहासन पर इन्हें बिठाओ!!
मन में हों यदि नेक भावना!
पूरी होंगी सभी कामना!!
बेच रहा मैं भगवानों को!
खोज रहा हूँ श्रीमानों को!!
ये सब मेरे भाग्य-विधाता!
भक्तों जोड़ो इनसे नाता!!
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)