लेख : सुख
जो बुद्धिहीन है, मूढ़ है उसका जीवन सुखपूर्वक बीतता है क्योंकि उसे जीवन की समस्याओं का आभास ही नहीं है। वो किसी अँधे व्यक्ति की भाँति है जिसने कभी रंगों को देखा ही नहीं, अनुभव ही नहीं किया। उसके लिए हर वस्तु का एक ही रंग है, काला रंग। जो बुद्धिमान है, उसका जीवन भी सुखपूर्वक ही बीतता है क्योंकि उसे समस्याओं का आभास तो है लेकिन साथ ही साथ उनका समाधान भी ज्ञात है इसलिए उसे समस्याओं का भय नहीं। दुखी वो है जो इन दोनों के मध्य है। जिसे समस्या तो दिखाई दे गई परंतु उसका समाधान ज्ञात नहीं। उसे पीड़ा होती है, भय लगता है। परंतु उसी पीड़ा, उसी भय में संभावना छुपी है। यही पीड़ा एक दिन हमें इन समस्याओं का हल ढूँढने पर विवश कर देती है। हमें ज्ञान के मार्ग की खोज करने को मजबूर कर देती है। ये जीवन वस्तुतः बुद्धिहीनता से बुद्धिमानी की ओर एक यात्रा है। मार्ग काँटों से भरा है, दुर्गम है परंतु यदि यात्री निष्ठापूर्वक यात्रा करे तो लक्ष्यप्राप्ति अवश्यंभावी है।
— भरत मल्होत्रा