कहानी ~कर्तव्य~
खट खट खट!
राधा देखो कोई आया है?राधा ने गिलास को मेज पर टिका दिया और स्वयम दरवाजे की और बढ़ गयी ।डॉक्टर रमेश के इंजेक्शन लगाते ही बच्चा एक आवाज करके शांत हो गया।शायद उसे वेहोशी आ गयी थी। राधा वापस आकर बच्चे के पास खड़ी हो गयी।कौन है ?डॉक्टर रमेश ने पूछा ।कोई होगा।आपको पूछता है।डॉक्टर का पेशा क्या जब देखो कोई न कोई बला लिए खड़ा रहता है कभी आराम का मौका नही गहन अंधकार हो य तीव्र बरसात ।डॉक्टर बोले राधा क्या तुम ये नही जानती की यदि आज मैं डॉक्टर न होता तो तुम्हारे बच्चे की क्या दशा होती जरा सोचो ।राधा के पास इस बात का कोई जबाव न था वह बैठ कर वच्चे के कपड़े ठीक करने लगी । डॉक्टर दरवाजे की और चल दिए वह युवक वड़ी बेचैनी से इंतजार कर रहा था।डॉक्टर को आते देख वह फौरन हाथ जोड़ कर बोल पड़ा ‘डॉक्टर साहब बाबू जि की तबियत बहुत खराब है उन्होंने आपको बुलाया है’ कौन हैं बाबू जि डाक्टर रमेश ने पूछा वही गोबिंद सिंह जि,वकील के पिता युवक ने उत्तर दिया। यह हमे कैसे जानते हैं किस मुहल्ले मे रहते है डॉक्टर रमेश ने पूछा। जि मिश्रा मार्केट मे मस्जिद के पीछे मकान है आपसे परिचित हैं युवक ने एक ही छण मे कह डाला ।डॉक्टर मुझसे !परिचित खैर !बुदबुदाते हुए डॉक्टर स्टोर रूम की और चल दिए ।बच्चे की दवा बनाकर बैग दवाइयों तथा इंजेक्शनों से भरने लगे की राधा बोल पड़ी यह कहाँ की तैयारी हो रही है।मरीज देखने ज रहा हूँ दो घण्टे मे आ जाऊंगा,ये तीन खुराक दवा होश आने पर आधे आधे घण्टे के क्रम मे दे देना और हां बर्फ आ जाय तो सिकाई कर देना बच्चे की दवा देते हुए डॉक्टर रमेश ने कहा। राधा कुछ रोष मे आ गयी वह गुस्से मे बोल पड़ी आज आपको इस समय कहीं नही जाना है।अपना बच्चा बीमार पड़ा है और आप जनाब बाहर जा रहे हैं।बच्चे को हमने दवा दे दि है आध घण्टे मे होश आ जायेगा डॉक्टर ने जल्दी से कहा।इतनी रात आपको कहीं नही जाना है कह दो सुबह देख लेंगे राधा ने कहा। नही राधा मुझसे ऐसा नही होगा यदि मैं उसकी रक्षा नही कर सका तो मेरा ये काम करना बेकार है । राधा जरा सोचो वह भी किसी माँ का बच्चा होगा तुम्हारे बच्चे की तरह ,सोचो उसकी माँ भी आंसू बहा रही होगी डॉक्टर ने कहा । वह तो मैं खुद बखुद समझती हूँ पर रात्रि मे अनजाने युवक के साथ अपरिचित स्थान पर जाना यही मेरी चिंता का कारण है डॉक्टर साहब को जानते थे तो मरीज को ले आते राधा ने कहा।
यही तो तुम्हारी नादानी कि पहचान है राधा डॉक्टर का अपना कोई जान पहचान का नही होता हर मरीज नया मेहमान होता है रोगी और डॉक्टर के बीच विश्वास की अदृश्य डोर होती है जिससे जान पहचान स्वतः बन जाती है।डॉक्टर का कर्तव्य है की वह प्रत्येक मरीज की सेवा समान रूप से करे चाहे वह अपना बच्चा हो या फिर पराया ” अच्छा राधा मैं चला!
डॉक्टर ने झोला उठाया और स्वयं मोटर साइकिल पर लटका कर युवक के बताये मार्ग पर चल दिए कुछ ही छनो मे वह मरीज के मकान के सामने उपस्थित थे ।घरके अंदर पहुंच कर डॉक्टर ने देखा एक अस्सी बरस का बूढ़ा मस्तक पर तिलक, चेहरे पर बीमारी की हालत मे भी रौनक उसपर मूंछे कुछ अजीब आभा प्रकट कर रही थी रोगी वेहोश था। डॉक्टर ने पास जाकर हाथ की नसों का हाथ से तथा सीने की धड़कन का परीक्षण पास मे लाये कुछ विशेष यंत्रों द्वारा किया। परीक्षण के बाद मस्तक पर हाथ लगाकर बैठ गए । जैसे शायद कुछ याद कर रहे हों , परिवार के सभी सदस्य आपस मे कानाफूसी कर रहे थे की एकाएक डॉक्टर कहने लगे क्या ए अध्यापक गोविन्द दास जि हैं ।सभी सदस्य डॉक्टर की हरकतों को एकाग्रचित देख रहे थे की अचानक इस प्रश्न ने सबको चकित कर दिया ।झट कृतज्ञता पूर्ण स्वर मे एक युवक बोल पड़ा हां हां हां डॉक्टर साब ये वही हैं।
डॉक्टर ने खुशी से ईश्वर का स्मरण किया और अपने गुरु के चरण स्पर्श किया।दवा से भरा इंजेक्शन उठाकर बोले आज गुरु की सेवा करने का अवसर प्राप्त हुवा और अपना कार्य समाप्त किया ।उपस्थित सभी लोग डॉक्टर को बड़ी आतुरता भरी निगाहों से देख रहे थे। वे सब लोग शायद समझ भी गए थे की डॉक्टर और कोई नही वह मरीज का शिष्य ह है।डॉक्टर ने दवा बनाया एक घण्टे बैठने के बाद इंजेक्शन के प्रभाव से प्राभावित मरीज को होश आ गया मरीज नेआंखे खोली और चारो तरफ देखने लगा तभी डॉक्टर ने पूछा “गुरु जि तबियत कैसी है? मुझे पहचाना ! मरीज ने दबे स्वर मे कहा ठीक हूँ बेटा रमेश! इतना कहनेके साथ ही मरीज की आँखों से आंसू बह निकले ये आंसू खुशी के थे।डॉक्टर ने चरण स्पर्श कर आशीर्वाद मांगा मरीज ने अपने शिष्य की सफलता की कामना ईश्वर से करते हुए कहा” बेटा जीवन मर सतत सफलता को प्राप्त करो आज मुझे अपार प्रसन्नता हैकि मेरा एक शिष्य ऐसा भी है जो मरते हुए को जीवन दे सकता है मैने क्या किया जीते को जीना सिखाया पर मेरा शिष्य ऐसा हैजो मरते को जिला सकता है। डॉक्टर गुरु के बचनो को शिरोधार्य कर कमरे के चारो तरफ देख रहे थे उनके मुखमुद्रा पर बेचैनी स्पष्ट झलक रही थी अचानक उनकी नजर फोन पर पड़ी पास जाकर रिसीवर उठाया और अपने घर पर नम्बर मिलाया बच्चे की हालात मालूम करने पर पता चला की उसे अभी होश नही आया है ।डॉक्टर रमेश ने रिसीवर क्रेडिल पर टिका दिया और कुछ सोंचने लगे । घर के सभी सदस्यों की नजरें डॉक्टर को ही देख रही थी वे सब जान चुके थे की डॉक्टर साहब के बच्चे की भी तबियत ज्यादा खराब है और वे उसे छोड़ कर दूसरे मरीज को बचाकर कर्तव्य पूरा करने आये हैं। जो डाक्टर का परम कर्तव्य है ।वेसभी सोंच रहे थे की जो अपने अबोध बालक को छोड़कर दूसरे को बचाने दौड़ा आया है ऐसे पुरुष धन्य है ईश्वर है।
गुरु जि से न रहा गया उनका मन और गदगद हो गया की उनका शिष्य एक साधारण डॉक्टर नहिअपितु ऐसा डॉक्टर है जो अपने को बाद मे पहले दूसरों को बचाता है।वे बोल पड़े बेटा रमेश जाओ अपने उस मासूम बच्चे को देखो मैं अब ठीक हूँ बिल्कुल ठीक जाओ डॉक्टर जाओ जाओ मैं ठीक हूँ।। **जयप्रकाश शुक्ल 9984540372**