कविता : बिन तेरे
बिन तेरे
तेरी यादों में
मुमकिन है…
मैं जी जाऊँ
बेखबर हूँ… ये भी हो सकता है
पूरी तरह बिखर जाऊँ !
ढह रहा
सपनों का घर
मुमकिन है…
आँसू पी जाऊँ !
बेखबर हूँ… ये भी हो सकता है
संग आँसुओं के बह जाऊँ !
घायल अपनी
यादों के पन्ने
मुमकिन है…
बँद कर पाऊँ !
बेखबर हूँ… ये भी हो सकता है
किताब पूरी पढ़ जाऊँ ! !
अंजु गुप्ता