“क.ख.ग.घ. सिखलाऊँगी”
मम्मी देखो मेरी डॉल।
खेल रही है यह तो बॉल।।
पढ़ना-लिखना इसे न आता।
खेल-खेलना बहुत सुहाता।।
कॉपी-पुस्तक इसे दिलाना।
विद्यालय में नाम लिखाना।।
मैं गुड़िया को रोज सवेरे।
लाड़ लड़ाऊँगी बहुतेरे।।
विद्यालय में ले जाऊँगी।
क.ख.ग.घ. सिखलाऊँगी।।
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)